सुनो, सुन्दर लड़की,
अक़सर तुम मेरे सपने में चली आती हो,
मेरे पास बैठकर बतियाती रहती हो,
कभी हंसती हो,
कभी नाराज़ हो जाती हो,
कभी-कभी अनजाने में
मेरा हाथ भी थाम लेती हो.
सुनो, सुन्दर लड़की,
वैसे तो तुम दूर-दूर रहती हो,
मुझसे बात करना तो दूर,
मेरी ओर देखती भी नहीं।
किस मिट्टी की बनी हो तुम?
मैंने कभी भी हक़ीक़त में तुम्हें
मुस्कराते नहीं देखा,
न तुम्हारा गुस्सा देखा है,
न तुम्हारा प्यार,
बस एक अजनबीपन देखा है.
हक़ीक़त में बहुत उबाऊ हो तुम,
पर सपने में बहुत जीवंत,
सुन्दर लड़की,
तुम्हें नहीं मालूम,
तुम्हारी वज़ह से आजकल
मैं सोता बहुत हूँ.