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बुधवार, 2 जुलाई 2025

813. चढ़ूँगा, तभी तो पहुंचूंगा

 



न जाने कब से खड़ा हूँ 

इस भीड़-भरे प्लेटफ़ॉर्म पर,

ट्रेनें आती जा रही हैं 

कभी इस ओर से, 

कभी उस ओर से, 

रुक रही हैं ठीक मेरे सामने।


चढ़ रहे हैं यात्री 

अपनी-अपनी ट्रेनों में 

पहुँच ही जाएंगे गंतव्य तक,

पुराने यात्रियों की जगह 

आ गए हैं अब नए यात्री,

पर मैं वहीं खड़ा हूँ, जहां था। 


कब तक करूंगा इंतज़ार,

कब तक रहूँगा दुविधा में, 

अब चढ़ ही जाता हूँ 

किसी-न-किसी ट्रेन में,

चढ़ूँगा, तभी तो पहुंचूंगा

कहीं-न-कहीं, कभी-न-कभी।