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बुधवार, 30 सितंबर 2020

४८७. शिकायत



रेलगाड़ी,

रोज़ तो तुम देर से आती हो,

आज उन्हें जाना है,

तो समय पर आ धमकी?

कौन-सी बदनामी हो जाती,

जो आज भी तुम देर से आती?

क्या बिगड़ जाता तुम्हारा,

जो सिग्नल पर ज़रा रुक जाती?

कौन सा अनर्थ हो जाता,

जो थोड़ी देर सुस्ता लेती?

जिन्हें जाना था,वे तो नहीं माने,

पर तुमने कौन सी दुश्मनी निभाई,

मैंने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा, 

रेलगाड़ी, तुमने क्यों जल्दी दिखाई?

रविवार, 27 सितंबर 2020

४८६. मिलन



नदी समंदर से मिली,

तो पता चला 

कि वह तो खारा था,

नदी ने सोचा,

खारे समंदर के साथ रह लेगी,

दोनों की अलग पहचान होगी,

पर समंदर को यह मंज़ूर नहीं था,

वह आमादा था 

कि मीठी नदी भी 

उसकी तरह खारी हो जाय.


अंत में वही हुआ 

जो समंदर चाहता था,

समंदर अब ख़ुश है.

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

४८५. अंतरात्मा



सुनो, महामारी के दौर में 

ख़ुद से ज़रा बाहर निकल जाना,

थोड़ी दूर रहकर 

ध्यान से देखना

कि क्या कुछ बचा है तुममें,

ख़ासकर अंतरात्मा बची है क्या,

अगर मर गई है, तो कैसे,

कोरोना तो नहीं मार सकता उसे.

मंगलवार, 22 सितंबर 2020

४८४. गाँव का स्टेशन


गाँव का छोटा-सा स्टेशन

अच्छा लगता है मुझे,

दिन में एकाध गाड़ी रूकती है यहाँ,

थोड़े-से यात्री चढ़ते हैं यहाँ से,

थोड़े-से उतरते हैं यहाँ.


इसी स्टेशन की बेंच पर बैठकर 

मैंने बुने थे भविष्य के सपने,

बनाई थीं तमाम योजनाएं,

लिखी थीं दर्जनों कविताएँ,

इसी के कोने पर बैठकर 

मैंने पहली बार उसे देखा था.


गाँव का यह स्टेशन न होता,

यह बेंच न होती,

तो बहुत से रिश्ते 

शायद रह जाते बनने से.


क्या अब भी आप पूछेंगे 

कि गाँव का यह छोटा-सा स्टेशन 

मुझे इतना पसंद क्यों है?

रविवार, 20 सितंबर 2020

४८३. ख़ुशी



ज़िन्दगी बीत गई तुम्हें ढूंढ़ते,

पर तुम मिली ही नहीं,

अब तो बता दो अपना पता,

अब वक़्त ज़रा कम है.

           ***

मैंने दुखी लोगों से पूछा,

ख़ुशी कहाँ है?

वे बोले,पता होता,

तो दुखी क्यों होते?

मैंने उनसे भी पूछा 

जो ख़ुश  रहते  हैं,

वे बोले, यह क्या सवाल है?

ख़ुशी कहाँ नहीं है?

          ***

मैं तुम्हें खोजता रहा बाहर,

पर तुम तो अन्दर ही थी,

कभी तुमने आवाज़ नहीं दी,

कभी मैंने अन्दर नहीं झाँका.


शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

४८२.सेमल




बगीचे में चुपचाप खड़ा 

एक सेमल का पेड़ 

कितने रंग दिखाता है,

कभी हरे पत्ते,

कभी गहरे लाल फूल,

तो कभी सूखे पीले पत्ते.


कभी-कभी तो सेमल 

बिल्कुल ठूंठ बन जाता है,

न पत्ते, न फूल,

उसकी एक-एक हड्डी 

साफ़-साफ़ दिखाई पड़ती है.


जब लगता है 

कि अब सेमल चुक गया,

दिन लद गए उसके,

वह लौटता है पूरी ताक़त से 

और बिछा देता है ज़मीन पर 

सफ़ेद,कोमल रूई का ग़लीचा.

मंगलवार, 15 सितंबर 2020

४८१. इन दिनों



आजकल मेरे साथ कोई नहीं,

पर मैं अकेला नहीं हूँ.


सुबह-सवेरे आ जाते हैं 

मुझसे मिलने परिंदे,

मैं अपनी बालकनी में 

आराम-कुर्सी पर बैठ जाता हूँ,

वे मुंडेर पर जम जाते हैं,

फिर ख़ूब बातें करते हैं हम.


मैं खिड़की के पार 

पेड़ों पर उग आईं

कोमल पत्तियों को देखता हूँ,

हवा में झूमती 

डालियों को देखता हूँ.


मैं गमलों में खिल रहे 

फूलों को देखता हूँ,

कलियों को देखता हूँ,

जो फूल बनने के इंतज़ार में हैं.


मैं देखता हूँ 

आकाश को लाल होते,

सूरज को निकलते,

उसे रंग बदलते.


शाम को सूरज से मिलने 

मैं फिर पहुँच जाता हूँ,

देखता हूँ उसका रंग बदलना

और धीरे-धीरे डूब जाना.


रात को बालकनी से 

मैं देखता हूँ घटते-बढ़ते चाँद को,

बादलों से उसकी लुकाछिपी,

फिर थककर सो जाता हूँ.


आजकल मैं अकेला नहीं हूँ,

न ही फ़ुर्सत में हूँ,

आजकल मैं उनके साथ हूँ 

जिनकी मैंने हमेशा अनदेखी की है.


रविवार, 13 सितंबर 2020

४८०. फ़ोटो

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मुझे रहने ही दो 

फ़ोटो से बाहर,

मुझे शामिल करोगे,

तो दिक्कत होगी तुम्हें.


मैं साफ़ कपड़े पहन लूँगा,

बाल बनवा लूँगा,

दाढ़ी-मूंछ कटवा लूँगा,

इत्र भी छिड़क लूँगा,

भले ही वह फ़ोटो में न आए,

पर क्लिक करते वक़्त 

जब तुम कहोगे 

कि मुस्कराओ,

तो मैं मुस्करा नहीं पाऊंगा.


मुझे नहीं आती

अन्दर से दुखी होकर 

बाहर से मुस्कराने की कला 

और तुम नहीं चाहोगे 

कोई ऐसा फ़ोटो खींचना,

जो सच बयाँ करे.

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

४७९. अनुभूति

silhouette of trees near mountain during sunset

आज कहीं नहीं जाना,

तो ऐसा करो,

अपने अन्दर उतरो,

गहरे तक उतरो.


तुम हैरान रह जाओगे,

वहां तुम्हें जाले मिलेंगे,

गन्दगी मिलेगी,

फैली हुई मिलेगी 

सड़ांध हर कोने में.


अपने अन्दर उतरोगे,

तो तुम्हें वह सब मिलेगा,

जो तुम हमेशा सोचते थे 

कि तुम्हारे अन्दर नहीं,

कहीं बाहर है.

मंगलवार, 8 सितंबर 2020

४७८. तीन कविताएँ


'रागदिल्ली' वेबसाइट पर प्रकाशित मेरी तीन कविताएँ.

बारिश से

बारिश, आज ज़रा जम के बरसना,
उन काँपती बूढ़ी हथेलियों में
थोड़ी देर के लिए ठहर जाना,
बहुत दिन हुए,
उन झुर्रियों को किसी ने छुआ नहीं है....

(पूरा पढ़ने के लिए लिंक खोलें)

https://www.raagdelhi.com/hindi-poetry-onkar/?


शनिवार, 5 सितंबर 2020

४७७.तीर

दशरथ ने चलाया है 

शब्दभेदी वाण,

मारा गया है श्रवण,

अनाथ हो गए हैं 

उसके अंधे माँ-बाप.


अफ़सोस है दशरथ को,

अयोध्यापति है वह,

पर उसके वश में नहीं है 

नुकसान की भरपाई करना.


मैं समझ नहीं पाता 

कि जिनके निशाने अचूक होते हैं,

वे किस अधिकार से 

बिना सोचे समझे 

कहीं भी तीर चला देते हैं?

बुधवार, 2 सितंबर 2020

४७६. बादलों से

Cloudy, Dark, Full Moon, Luna, Moon

बादलों,

मैं चाँद को देख रहा था 

और चाँद मुझे,

तुम क्यों आ गए बीच में ?

इतनी बड़ी दुनिया में 

कहीं भी चले जाते,

बस चाँद-भर आकाश छोड़ देते,

बाक़ी सब तुम्हारा था.

***

बादलों,

चाँद को छिपाकर

इतना मत इतराओ,

मैं देख सकता हूँ उसे 

आँखें बंद करके,

तुम्हारे होते हुए भी.

***

बादलों,

मैं कब से इंतज़ार में था 

कि चाँद निकले,

वह निकला भी,

पर तुमने उसे छिपा लिया,

बिना उससे पूछे 

कि वह छिपना चाहता था क्या?

अब हट भी जाओ रास्ते से,

तुम्हें नहीं पता,

पर मैं जानता हूँ 

कि चाँद बहुत उदास होगा.