सुनो,
किसी शाम एक नाव लेते हैं,
ब्रह्मपुत्र में निकलते हैं,
लहरें जिधर ले जायँ,
उधर चलते हैं.
इतनी दूर निकल लेते हैं
कि गौहाटी शहर की बत्तियां
ओझल हो जायँ नज़रों से.
जब कुछ भी न दिखे,
पानी भी नहीं,
तो बंद कर दें चप्पू चलाना,
कानों में पड़ने दें
बहते पानी की आवाज़.
बहुत दिनों से हमने सुना नहीं है
कि ब्रह्मपुत्र कहना क्या चाहता है.