उसे बहुत पसंद है
अपनी लाठी,
एक वही है,
जो उसके पास रहती है,
वरना उसके साथ से
बड़ी जल्दी ऊब जाते हैं
सब-के-सब.
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तुम्हें लगता है
कि बिना लाठी के तुम
चल नहीं पाओगे,
पर एक बार अपनी लाठी
ख़ुद बन के तो देखो,
शायद किसी और लाठी की तुम्हें
ज़रूरत ही न पड़े.
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मेरी लाठी मुझे
सहारा तो देती है,
पर मुझे अच्छा नहीं लगता,
वह जब चलती है,
तो शोर बहुत करती है.
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उसने इतना बोझ डाल दिया
कि लाठी ही टूट गई,
जिन्हें सहारा चाहिए,
उन्हें अपना वज़न
कम रखना पड़ता है.