आजकल मुझे नींद नहीं आती,
मुझे जलते हुए मकान,
लुटता हुआ सामान,
भागते हुए पैर,
छुरे और तमंचे दिखते हैं.
मुझे खोई-खोई आँखें,
जुड़ी हुई हथेलियाँ,
दहशत भरे चेहरे,
गठरी-से बदन दिखते हैं,
मुझे कब्रें और चिताएं,
ताबूत और कफ़न दिखते हैं.
आजकल मेरे बंद कमरे में
बेबस चीखें गूंजती हैं,
मेरे सपनों में आजकल
ताज़ा खून टपकता हैं.
आजकल बहुत से शहरों में
बहुतों की नींद गायब है,
आजकल मुज़फ्फर्नगर
न खुद सोता है,
न दूसरों को सोने देता है.
मुझे जलते हुए मकान,
लुटता हुआ सामान,
भागते हुए पैर,
छुरे और तमंचे दिखते हैं.
मुझे खोई-खोई आँखें,
जुड़ी हुई हथेलियाँ,
दहशत भरे चेहरे,
गठरी-से बदन दिखते हैं,
मुझे कब्रें और चिताएं,
ताबूत और कफ़न दिखते हैं.
आजकल मेरे बंद कमरे में
बेबस चीखें गूंजती हैं,
मेरे सपनों में आजकल
ताज़ा खून टपकता हैं.
आजकल बहुत से शहरों में
बहुतों की नींद गायब है,
आजकल मुज़फ्फर्नगर
न खुद सोता है,
न दूसरों को सोने देता है.