सोमवार, 30 सितंबर 2013

९९.आजकल

आजकल मुझे नींद नहीं आती,
मुझे जलते हुए मकान,
लुटता हुआ सामान,
भागते हुए पैर,
छुरे और तमंचे दिखते हैं.

मुझे खोई-खोई आँखें,
जुड़ी हुई हथेलियाँ,
दहशत भरे चेहरे,
गठरी-से बदन दिखते हैं,
मुझे कब्रें और चिताएं,
ताबूत और कफ़न दिखते हैं.

आजकल मेरे बंद कमरे में 
बेबस चीखें गूंजती हैं,
मेरे सपनों में आजकल 
ताज़ा खून टपकता हैं.

आजकल बहुत से शहरों में
बहुतों की नींद गायब है,
आजकल मुज़फ्फर्नगर
न खुद सोता है,
न दूसरों को सोने देता है.


शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

९८. घुसपैठ

क्या तुम बिनबुलाए 
कहीं भी पहुँच जाते हो?
बिना दरवाज़ा खटखटाए,
बिना इजाज़त लिए
कहीं भी घुस जाते हो?

फिर मेरे जीवन में 
कैसे घुस आए तुम
चुपचाप, बिना बताए?
कैसे जमा लिया आसन
तुमने मेरे मन में 
बिना मेरी अनुमति के?

अब तुम निकलने से इन्कार करते हो,
जैसे कि यही तुम्हारा घर हो,
अब मुझसे भी कहा नहीं जाता 
कि रहने दो मुझे अकेला,
छोड़ दो मुझे मेरे हाल पर,
किस हक़ से चले आए तुम?

अब असहज रहकर ही सही,
मुझे तुम्हारी आदत हो गई है,
अब मुझसे भी कहा नहीं जाता 
कि मेरे जीवन, मेरे मन से 
घुसपैठिए, तुम निकल जाओ.

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

९७. गृहिणी और सिलवटें


दिन भर की थकान के बाद 
जब गृहिणी बिस्तर पर पहुँचती है,
उसे नींद नहीं आती.
आज का अपमान,झिड़कियाँ,
कल की चिंताएं,परेशानियाँ,
उसे सोने नहीं देते.

सुबह उठकर गृहिणी देखती है
अपने हिस्से का बिस्तर 
और उसपर पड़ी सिलवटें.

ये वे सिलवटें नहीं हैं,
जिन्हें देखकर शर्म आती है,
ये वे सिलवटें नहीं हैं,
जिन्हें देखकर लोग 
मन-ही-मन मुस्कराते हैं,
ये बेचैनी की सिलवटें हैं.

हर सुबह गृहिणी 
सिलवटें ठीक करती है,
हर सुबह गृहिणी 
करवटें बदलने का दंड भोगती है,
गृहिणी की हर सुबह एक-सी होती है,
उसकी किसी सुबह में 
कोई नया सूरज नहीं उगता. 

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

९६. मौसम से

कभी गर्मी, कभी बारिश, कभी उमस,
मौसम, अपनी झोली में गहरे हाथ डालो,
कुछ अच्छा-सा हो, तो निकालो.

बहुत खेल ली आँख-मिचौली तुमने,
बहुत कर चुके मनमानी,
अब तो ज़रा रहम खा लो.

वे पुराने सुहाने दिन -
महीनों तक चलनेवाले,
न ज्यादा ठण्ड,न गर्मीवाले,
न बदबूदार पसीनेवाले,
न काँटों-से चुभनेवाले -
एक बार फिर से बुला लो.

दो झोलियाँ हों तुम्हारे पास,
तो फ़ेंक दो यह झोली,
दूसरी झटपट उठा लो.

मौन क्यों हो तुम, मौसम,
कब तक करते रहोगे तंग,
सब कुछ तो दिखा दिया तुमने,
सब को नचा दिया तुमने,
कोई कसर नहीं छोड़ी तुमने,
अब तो पलटी खा लो.