लोगों को मेरी प्रेम कविताएँ पसंद नहीं,
पर मुझे हमेशा लगता है
कि मैं प्रेम कविताओं का कवि हूँ.
मुझे अपनी कविताएँ अच्छी लगती हैं,
जब वे प्रेम के बारे में होती हैं,
पर मैं यह नहीं समझ पाता
कि जो चीज़ मुझमें है ही नहीं,
वह मेरी कविताओं में कैसे आ जाती है
और वह भी इतने असरदार तरीक़े से.
अगर कोई मुझे बता दे
कि अपनी कविताओं का प्रेम
मैं अपने स्वभाव में कैसे लाऊँ,
तो मैं इस बात के लिए तैयार हूँ
कि फिर कभी प्रेम कविताएँ नहीं लिखूँ.