एक छोटा सा बीज था मैं,
अब पौधा बन गया हूँ .
बस थोड़ी सी मिट्टी मिली थी चट्टान पर,
उसी में प्रस्फुटित हुआ
और वहीँ जमा लीं अपनी जड़ें .
यह तो बस शुरुआत है,
धीरे-धीरे वह दिन भी आएगा,
जब मेरी जड़ें इतनी मजबूत होंगीं
कि यह चट्टान फट जाएगी .
कभी मैं और चट्टान
दोनों कठोर थे,
मैंने छोड़ दी अपनी कठोरता,
आने दिया कोमलता को बाहर,
पर चट्टान चूर रही मद में,
छोड़ नहीं पाई कठोरता,
खोज नहीं पाई कोमलता
अपनी सख्त सतह के नीचे .
जब मेरी जड़ें तोड़ेंगी चट्टान को,
तो यह बीज की चट्टान पर नहीं
कोमलता की कठोरता पर विजय होगी .