शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

३१९.बारिश में


आओ, बारिश में निकलें,
तोड़ दें छाते,
फाड़ दें रेनकोट,
भिगो लें बदन.

सड़क के गड्ढों में 
पानी जमा है,
देखते हैं 
उसमें उछलकर 
कैसा लगता है.

देखते हैं 
कि बंद पलकों पर 
जब बूँदें गिरती हैं,
तो कैसी लगती हैं,
जब बरसते पानी से
बाल तर हो जाते हैं,
तो कैसा लगता है.

कैसा लगता है,
जब कपड़े गीले होकर
बदन से चिपक जाते हैं, 
जब  बरसती बूँदें कहती हैं,
'बंद करो अपनी बातचीत,
अब मेरी सुनो.'

आओ, निकल चलें बारिश में,
निमोनिया होता है,
तो हो जाय,
सूखे-सूखे जीने से 
भीगकर मर जाना अच्छा है.

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

३१८. सफ़र में


उतार दो गठरियाँ
अंधविश्वासों की,
कट्टरता की,
पूर्वाग्रहों की.

फेंक दो संदूक 
ईर्ष्या और द्वेष के,
नफ़रतों के,
बदले की भावना के. 

ज़िन्दगी का सफ़र लम्बा है,
सामान की यहाँ
कोई सीमा नहीं है,
पर हल्के चलो,
सहूलियत होगी.

शनिवार, 14 जुलाई 2018

३१७. एसेंस

वह जो कोने में 
गुमसुम सी लड़की बैठी है,
बहुत सहा है उसने,
बहुत लोगों ने तोड़ा है 
भरोसा उसका,
फ़ायदा उठाया है हर तरह से.

अब कुछ नहीं बोलती 
वह लड़की,
उसे नहीं लगता 
कि कोई सुननेवाला है,
हालाँकि कहने को 
बहुत कुछ है उसके पास.

अब वह लड़की 
प्रतिरोध नहीं करती,
ताक़त ही नहीं है उसमें,
जब भी प्रतिरोध किया,
बेरहमी से कुचला गया उसे.

अब वह लड़की रोती नहीं,
आंसू सूख गए हैं उसके,
पूरी ज़िन्दगी का रोना 
थोड़े समय में ही रो लिया है उसने,
अब पत्थर हो गई है वह लड़की.

कभी भूले-भटके 
कोई हमदर्द मिल जाय,
जो लड़की के दिल को छू ले,
तो एक आंसू छलक आता है 
उसके पलकों की कोर पर.

यह महज़ एक बूँद नहीं है,
लड़की अपने अन्दर 
जिस असीमित वेदना को 
छिपाए हुए है,
यह आंसू उसका एसेंस है.


शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

३१६. असमंजस

बहुत संभलकर बोलता हूँ मैं,
तौलता हूँ शब्दों को बार-बार,
पर लोग हैं 
कि निकाल ही लेते हैं
मेरे थोड़े-से शब्दों के 
कई-कई अर्थ.

जब मैं कुछ नहीं बोलता,
तो भी निकाल लिए जाते हैं 
मेरी चुप्पी के कई-कई अर्थ.

अलग-अलग लोग 
मेरी चुप्पी 
या मेरे शब्दों के 
अलग-अलग अर्थ निकालते हैं,
मुझसे अलग-अलग सवाल करते हैं.

मैं असमंजस में हूँ 
कि उनके सवालों का जवाब 
मैं शब्दों में दूं 
या चुप्पी में?