रविवार, 30 अक्तूबर 2022

६७५. मुझे नहीं बनना आदमी

 


मैं पानी बनना चाहता हूँ

ताकि सूखे होंठों की प्यास बुझा सकूं,

मैं रोटी बनना चाहता हूँ

ताकि पिचके पेटों की भूख मिटा सकूं. 


मैं फूल बनना चाहता हूँ

ताकि सूने आंगन में महक सकूं,

मैं हवा बनना चाहता हूँ 

ताकि थके जिस्मों का पसीना सोख सकूं. 


मैं आंसू बनना चाहता हूँ 

ताकि बहा दूँ कोई जमी हुई पीड़ा,

मैं बादल बनना चाहता हूँ 

ताकि बरस जाऊं सूखी ज़मीन पर कहीं. 


मैं तितली बनना चाहता हूँ,

पक्षी बनना चाहता हूँ,

जुगनू बनना चाहता हूँ,

मैं कुछ भी बन सकता हूँ,

पर नहीं बनना मुझे आदमी.




सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

६७४. बूढ़ा दीपक

 


यह बूढ़ा दीपक,

जो काला हो गया है,

जल-जल कर हुआ है,

कहीं-कहीं से टूट भी गया है,

यह ऐसा नहीं था,

जब कुम्हार ने इसे बनाया था. 

***

कोने में पड़ा है 

वह बूढ़ा दीपक,

जवान दीपक भूल गए हैं 

कि उसी ने रौशन किया था उन्हें,

जब वह जवान था. 

***

काँप रही है लौ 

उस बूढ़े दीपक की,

उसे नहीं चाहिए 

कोई तेल, कोई बाती,

उसके लिए बहुत है 

तुम्हारी हथेलियों की ओट. 

***

देखो,

कितना डरा-डरा सा है

वह बूढ़ा दीपक,

उसे कोने से उठा लो,

पंक्ति में रख दो. 


शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

६७३. दीपक से

 



दीपक,

तुमसे एक विनती है,

इस बार दिवाली में 

कोई भेदभाव मत करना,

अट्टालिकाओं में ही नहीं,

झोपड़ियों में भी जलना. 


बाग़ीचों और पार्कों में ही नहीं,

खेत-खलिहानों में भी जलना,

होटलों और बाज़ारों में ही नहीं,

गाँवों के चबूतरों पर भी जलना. 


दीपक,

इस बार दिवाली में 

कहीं और जलो, न जलो,

वहाँ ज़रूर जलना,

जहाँ न जाने कब से 

अंधेरों का कब्ज़ा है.


सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

६७२. क़ैद

 


मैंने कोई अपराध नहीं किया,

पर मैं कारागार में हूँ,

कभी छूटूँगा भी नहीं, 

उम्र-क़ैद काट रहा हूँ. 


कोई जज क्या करेगा?

कोई अदालत क्या करेगी?

सारे वक़ील निरुपाय हैं,

कोई रास्ता नहीं दिखता.


न कोई क़ानून काम आएगा,

न कोई दलील चलेगी,

कोई सुनवाई नहीं होगी,

न ही कोई फ़ैसला होगा. 


कहने को तो मैं अपने घर में हूँ,

पर ध्यान से देखिए,

मैं आज़ाद नहीं हूँ,

मैं अपनी इमेज की क़ैद में हूँ. 

 


शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2022

६७१. आँसू

 


मैंने आँसुओं से कहा,

मुझ पर एक एहसान करना,

पलकों तक तो चले आए,

बाहर मत निकलना. 


आँसू रुआंसे होकर बोले,

हमारा ख़ुद पर वश कहाँ,

न  हम ढीठ हैं,न बहरे,

पर पलकों तक आ गए,

तो वापस नहीं जा सकते,

बाहर निकलना और बहना 

हमारी मजबूरी है. 


हाँ,अगर चाहो, 

तो जीभ से कहो   

कि थोड़ा-सा झूठ बोल दे,

कह दे

कि ये ग़म के नहीं,

ख़ुशी के आँसू हैं. 


 

 

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2022

६७०. तुम्हारा जाना


 

पिता,

तुमने ठीक नहीं किया 

कि यूँ अचानक चले गए,

पूर्व सूचना देते,

थोड़ा बैठते,

बतियाते,

फिर चले जाते,

मैं रोकता नहीं तुम्हें,

रोकता भी,

तो तुम रुकते थोड़े ही?


पिता,

मैं रोक सकता तुम्हें,

तो ज़रूर रोक लेता,

तुम गए,

तो न जाने क्या-क्या चला गया,

मेरा बचपन चला गया,

मेरी जवानी चली गई.


पिता,

तुम क्या गए,

मैं अचानक बूढ़ा हो गया. 


शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

६६९. स्वर्ग और नरक

 


अपनी दुनिया में वह 

बहुत दुःखी था, 

मुझे तरस आया,

मैंने उसे स्वर्ग में रखा,

वह वहाँ भी दुःखी था. 


उसके लिए स्वर्ग और नरक 

दोनों एक जैसे थे, 

उसमें वह हुनर था 

कि स्वर्ग को भी नरक बना दे. 


असल में दुःख बाहर नहीं,

उसके अंदर ही था, 

स्वर्ग में भी सुखी होना 

उसके वश में नहीं था.



बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

६६८. दशहरा

 


दशहरे में जलता है 

पुतला रावण का,

पर ज़रूरी नहीं 

कि तीर चलाने वाला राम हो,

रावण भी जला सकता है 

अपना पुतला कभी-कभी 

ताकि कोई जान न पाए 

कि वह राम नहीं, रावण है. 

**

बड़ी भीड़ थी इस बार मेले में,

पता ही नहीं चला,

कौन राम था, कौन रावण,

कौन जल रहा था,

कौन जला रहा था. 

**

मेले में जाना है,

तो तमाशा देखने जाना, 

यह सोचकर मत जाना 

कि रावण जलेगा, 

भीड़ का क्या भरोसा 

न जाने किसको जला दे.