इस बार मिलने आऊँ,
तो ए .सी. बंद कर देना,
खिड़कियाँ खोल देना,
आने देना अन्दर तक
बारिश में भीगी हवाएं.
मत बनाना मेरे लिए पकवान,
झालमुड़ी का एक दोना बहुत होगा,
काजू, पिस्ता,बादाम नहीं,
थोड़ी-सी मूंगफली मंगवा लेना.
फिर चलेंगे गली के नुक्कड़ पर
उसी पुराने लैम्पपोस्ट के पास,
बातें करेंगे घंटों खड़े होकर,
भूल जाएंगे घुटनों का दर्द.
तो ए .सी. बंद कर देना,
खिड़कियाँ खोल देना,
आने देना अन्दर तक
बारिश में भीगी हवाएं.
मत बनाना मेरे लिए पकवान,
झालमुड़ी का एक दोना बहुत होगा,
काजू, पिस्ता,बादाम नहीं,
थोड़ी-सी मूंगफली मंगवा लेना.
फिर चलेंगे गली के नुक्कड़ पर
उसी पुराने लैम्पपोस्ट के पास,
बातें करेंगे घंटों खड़े होकर,
भूल जाएंगे घुटनों का दर्द.
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंउम्दा अभिव्यक्ति।
नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 13 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं.. बहुत ही उम्दा रचना यूं लग रहा है कि उम्र को कहीं पीछे छोड़ आए हैं आप ....मुझे सबसे मजेदार बात यह लगी कि मैंने मेरी आज की रचना में मैंने भी घुटनों के दर्द को लिखा आपने भी घुटनों के दर्द को लिखा... चलिए अच्छी बात है थोड़ी सी समानता हम दोनों की रचना में आ गई.... आपको भी बहुत ढेर सारी बधाई और धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह... ज़िन्दगी के बेहद क़रीब... वास्तविकता का बयान.. साधुवाद 💐
जवाब देंहटाएंसच अक्सर भौतिक सुविधाएँ बड़ी कष्टदायिनी बन जाती है,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
बहुत खूब बहुत खूब माटी से जुड़ने का एहसास के विचार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता प्रकृति शक्ति
जवाब देंहटाएंफिर चलेंगे गली के नुक्कड़ पर
जवाब देंहटाएंउसी पुराने लैम्पपोस्ट के पास,
बातें करेंगे घंटों खड़े होकर,
भूल जाएंगे घुटनों का दर्द.
aahaa..waah
bahut hi khoosurti aur sarltaa se likhi behad pyari rchnaa
bdhaayi