भगोने में उबल रहा है दूध,
गृहिणी देख रही है एकटक
अपने अंदर ही अंदर उबलता
अपमान और अनदेखी का गुस्सा.
भगोने पर लगे ढक्कन से
ठहरता नहीं उफनता दूध,
पर गृहिणी का गुस्सा रुका है
शर्म,डर और संस्कार के ढक्कन से.
उफन-उफन के गिर रहा है दूध
किसी विकराल झरने की तरह,
अब तो उसने बुझा भी दी है
चूल्हे में जल रही आग.
गृहिणी सोचती है,
क्या वह भी उफनेगी कभी,
क्या वह भी बुझा सकेगी कभी,
अपमान और अनदेखी की आग
जो जला रही है उसे
न जाने कब से
बिना रुके, लगातार...
गृहिणी देख रही है एकटक
अपने अंदर ही अंदर उबलता
अपमान और अनदेखी का गुस्सा.
भगोने पर लगे ढक्कन से
ठहरता नहीं उफनता दूध,
पर गृहिणी का गुस्सा रुका है
शर्म,डर और संस्कार के ढक्कन से.
उफन-उफन के गिर रहा है दूध
किसी विकराल झरने की तरह,
अब तो उसने बुझा भी दी है
चूल्हे में जल रही आग.
गृहिणी सोचती है,
क्या वह भी उफनेगी कभी,
क्या वह भी बुझा सकेगी कभी,
अपमान और अनदेखी की आग
जो जला रही है उसे
न जाने कब से
बिना रुके, लगातार...
गहन भाव............
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कल्पनाशीलता.....
उत्कृष्ट कृति..
सादर
अनु
गृहिणी सोचती है,
जवाब देंहटाएंक्या वह भी उफनेगी कभी,
क्या वह भी बुझा सकेगी कभी,
अपमान और अनदेखी की आग
जो जला रही है उसे
न जाने कब से
बिना रुके, लगातार...गहन सोच
हमारी टिप्पणी???? स्पाम देखिये प्लीस..
जवाब देंहटाएंमाफ कीजियेगा| मैंने स्पैम की ओर ध्यान नहीं दिया| आपने इस ओर ध्यान दिलाया. धन्यवाद.
हटाएंgrihani ki soch ko dudh ke ufaan ke saath compare:)))
जवाब देंहटाएंनारी के उठते भावो लाजबाब प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंपोस्ट पर आने के लिए आभार,,,,,
यही अंतर तो गृहणी को देवी का पद दिलाता है.
जवाब देंहटाएं............ सरल शब्दों में सुन्दर प्रस्तुति
एक गृहिणी की नज़र से शायद येही सच है .....
जवाब देंहटाएंनारी व्यथा का बहुत गहन और सार्थक चित्रण...बहुत सुन्दर
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