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शनिवार, 21 जुलाई 2012

४१.सफ़ेद झूठ

सब सराहते हैं मेरे नाक-नक्श,
सब कहते है अच्छा लगता हूँ मैं,
पर यह आईना क्यों टांग अड़ाता है,
क्यों कहता है हर रोज बार-बार 
कि तुम बहुत बदसूरत हो,
इतने कि मैं भी नहीं देखना चाहता तुम्हें.


चलो, मैं भी नहीं देखूँगा कभी आईना,
जो इतना सफ़ेद झूठ बोलता है,
कैसे मान लूं मैं कि सारे लोग गलत हैं 
और यह बेजान आईना सही है?

6 टिप्‍पणियां:

  1. चलो, मैं भी नहीं देखूँगा कभी आईना,
    जो इतना सफ़ेद झूठ बोलता है,
    कैसे मान लूं मैं कि सारे लोग गलत हैं
    और यह बेजान आईना सही है?... ये भी सही है

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  2. आइना अक्सर ठीक कहता रहा है ...

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  3. आइना सिर्फ सूरत देखता है...लोग देखते हैं सीरत....और रूह....
    आइना ही झूठा है....

    सादर
    अनु

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  4. आपकी अंतरात्मा ही आपका आईना है
    किसी के कहने या ना कहने से आप अच्छे या बुरे नहीं हो सकते ..
    आपकी अंतरात्मा ही सच्ची गवाही देता है ..

    गहन भाव के साथ लिखी गयी
    काफी सुंदर रचना ..
    सादर !

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  5. पर यह आईना क्यों टांग अड़ाता है,
    क्यों कहता है हर रोज बार-बार
    कि तुम बहुत बदसूरत हो,

    क्योंकि आप सिर्फ अपनी शक्ल देखते हैं और लोग आपकी सीरत भी .....!!

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