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शनिवार, 7 जुलाई 2012

39. प्यार या सहारा

यह जो तुम्हारे कंधे पर 
मैंने अपना हाथ रखा है,
प्यार से रखा है,
क्या तुमने समझा है?

मेरी हथेलियों की 
थोड़ी अतिरिक्त  ऊष्मा,
एक अलग-सी कोमलता,
क्या तुमने महसूस की है?

यह जो तुम्हारे कंधे पर 
मैंने अपना हाथ रखा है,
सहारे के लिए नहीं रखा है,
सहारा ही लेना होता 
तो लाठी बेहतर होती,
न कसमसाती,
न एहसान जताती,
न इस दुविधा में रहती 
कि मैंने उसपर अपना हाथ 
सहारे के लिए रखा है 
या सिर्फ प्यार से...

11 टिप्‍पणियां:

  1. मन के भावो को शब्दों में उतर दिया आपने.... बहुत खुबसूरत.....

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  2. गहन भाव लिए बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  3. यह जो तुम्हारे कंधे पर
    मैंने अपना हाथ रखा है,
    सहारे के लिए नहीं रखा है,
    सहारा ही लेना होता
    तो लाठी बेहतर होती,
    न कसमसाती,
    न एहसान जताती,
    न इस दुविधा में रहती
    कि मैंने उसपर अपना हाथ
    सहारे के लिए रखा है
    या सिर्फ प्यार से...बहुत बढ़िया

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  4. प्रेम पगे भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति

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  5. वाह..
    बहुत सुन्दर भाव,,,,,
    इंसानी फितरत है ही ऐसी...

    अनु

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  6. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल रविवार को 08 -07-2012 को यहाँ भी है

    .... आज हलचल में .... आपातकालीन हलचल .

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  7. हर पोस्ट से हमारी टिप्पणी स्पाम में जा रही है ...प्लीस देखिये सर.

    अनु

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  8. वाह||||
    गहरे भाव लिए सुन्दर रचना...
    :-)

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  9. बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति ...

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