३३३. अच्छा दिन
बहुत अच्छा दिन है आज.
आँगन में बरसों से
बंजर खड़ा था जो पेड़,
दो चार फल लगे हैं उसमें,
बेल जो चढ़ गई थी
अधिकार से छतपर,
चंद कलियाँ खिल आई हैं उसमें।
मेरी कलम जो गुमसुम थी,
उदास थी कई दिनों से,
आज फिर से चल पड़ी है,
लिख डाली है आज उसने
एक ठीकठाक सी कविता।
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंओंकार जी आपकी इस रचना को पुस्तकायन ब्लॉग पर साँझा किया गया है
जवाब देंहटाएंपुस्तकायन ब्लॉग
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