मंगलवार, 20 नवंबर 2018

३३३. अच्छा दिन


बहुत अच्छा दिन है आज.

आँगन में बरसों से 
बंजर खड़ा था जो पेड़,
दो चार फल लगे हैं उसमें,
बेल जो चढ़ गई थी 
अधिकार से छतपर, 
चंद कलियाँ खिल आई हैं उसमें।

मेरी कलम जो गुमसुम थी,
उदास थी कई दिनों से,
आज फिर से चल पड़ी है,
लिख डाली है आज उसने 
एक ठीकठाक सी कविता।

2 टिप्‍पणियां:

  1. ओंकार जी आपकी इस रचना को पुस्तकायन ब्लॉग पर साँझा किया गया है

    पुस्तकायन ब्लॉग
    https://padhatehue.blogspot.com/

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