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बुधवार, 13 सितंबर 2023

७३३. हिन्दी की गुहार

हिंदी दिवस के अवसर पर मेरी कविता ‘हिन्दी की गुहार’. इसमें हिंदी के विकास के लिए आदान- प्रदान के महत्व को रेखांकित किया गया है.

***
बंद मत रखो मुझे,
खुले में आने दो,
साँस लेने दो.

पहुँचने दो मुझ तक
हवाओं के झोंके,
बारिश की बूँदें,
सूरज की किरणें,
फूलों की ख़ुशबू ,
कोयल के गीत.

जानता हूँ मैं
कि यह तुम्हारा प्यार है,
जो मुझे बाँधता है,
पर वह प्यार ही कैसा,
जो जान लेकर माने,
ज़रा सोचकर देखो,
मुझे बचाने के लिए
तुम जो कर रहे हो,
वही तो मार रहा है मुझे.

मुझे ख़ुश रखना है,
फलते-फूलते देखना है,
तो दूसरों को मुझसे,
मुझे दूसरों से मिलने दो,
समय के साथ चलने दो,
बाँधो मत, मुझे बहने दो


7 टिप्‍पणियां:

  1. बाँधों मत मुझे बहने दो...
    सुंदर रचना सर।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बहुत सुंदर सृजन, सच इसे खुला छोड़ना ही होगा मिलजुल कर पहचान बनानी होगी।
    हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं 🌹

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  3. हिन्दी तो शुरू से ही अन्य भाषाओं के शब्द अपनाती आ रही है, पर यह कभी समाप्त न होने वाली यात्रा है

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