देखो, कभी तुम थक जाओ
तो सुस्ता लेना,
थकने में कोई शर्म नहीं है,
थकान को कभी मत छिपाना,
कुछ भी छिपाना गलत है.
कभी नींद आए तो सो जाना,
ज़रुरी नहीं कि रात को ही सोया जाए,
गलत नहीं है दिन में सोना,
सोने के लिए नींद ज़रुरी है,
अँधेरा नहीं.
कभी दिल करे तो सोए रहना,
उठना ज़रुरी नहीं है,
नहीं उठने में कोई शर्म नहीं है,
हर कोई एक बार तो ऐसे सोता ही है
कि फिर कभी न उठे.
तो सुस्ता लेना,
थकने में कोई शर्म नहीं है,
थकान को कभी मत छिपाना,
कुछ भी छिपाना गलत है.
कभी नींद आए तो सो जाना,
ज़रुरी नहीं कि रात को ही सोया जाए,
गलत नहीं है दिन में सोना,
सोने के लिए नींद ज़रुरी है,
अँधेरा नहीं.
कभी दिल करे तो सोए रहना,
उठना ज़रुरी नहीं है,
नहीं उठने में कोई शर्म नहीं है,
हर कोई एक बार तो ऐसे सोता ही है
कि फिर कभी न उठे.
हर कोई एक बार तो ऐसे सोता ही है ..... बहुत खूब ... गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंachchi kahi......
जवाब देंहटाएंकाश के सो पाते इस तरह......
जवाब देंहटाएंऔर जब जी चाहे उठ पाते....
:-)
कभी दिल करे तो सोए रहना,
जवाब देंहटाएंउठना ज़रुरी नहीं है,
नहीं उठने में कोई शर्म नहीं है,
हर कोई एक बार तो ऐसे सोता ही है
कि फिर कभी न उठे.
सुंदर रचना,,,,, ,
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
कुछ अलग से .... विरक्त से , निर्वाण से भाव
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकिसी कों ऐसा न सोना पड़े की वो उठ भी न सके ..
जवाब देंहटाएंसुंदर दर्शन।
जवाब देंहटाएंजैसे जीवन मृत्यु ठीक उसी तरह सेवा और सेवानिवृत्त है
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