धन-दौलत ,ज़मीन -जायदाद ,
यहाँ तक कि रिश्ते-नाते,
सब कुछ तो बंट गया,
कुछ भी शेष नहीं बंटने को।
साझा अब कुछ भी नहीं,
कुछ भी नहीं ऐसा
जिसका आधा तुम्हें भेज सकूं,
न ही ऐसा कुछ तुम्हारे पास है
जिसका आधा तुम मुझे भेज सको।
बस एक आंसू जो बंद था पलकों में
गालों पर छलक आया है,
कहो तो आधा तुम्हें भिजवा दूं,
ऐसा ही कुछ तुम्हारे पास हो
तो आधा इधर भिजवा देना।
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बस एक आंसू जो बंद था पलकों में
जवाब देंहटाएंगालों पर छलक आया है,
कहो तो आधा तुम्हें भिजवा दूं,
ऐसा ही कुछ तुम्हारे पास हो
तो आधा इधर भिजवा देना। ... बेजोड़ भाव
गालों पर छलक आया है,
जवाब देंहटाएंकहो तो आधा तुम्हें भिजवा दूं,
ऐसा ही कुछ तुम्हारे पास हो
तो आधा इधर भिजवा देना।
आँसू ही शायद अपना था जिसे बांटा जा सकता था ... बहुत संवेदनशील रचना
बस एक आंसू जो बंद था पलकों में
जवाब देंहटाएंगालों पर छलक आया है,
कहो तो आधा तुम्हें भिजवा दूं,
ऐसा ही कुछ तुम्हारे पास हो
तो आधा इधर भिजवा देना।
मार्मिक संवेदनशील रचना,....
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
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बस एक आंसू जो बंद था पलकों में
गालों पर छलक आया है,
कहो तो आधा तुम्हें भिजवा दूं,
ऐसा ही कुछ तुम्हारे पास हो
तो आधा इधर भिजवा देना…
वाह वाऽऽह बंधुवर ओंकार जी
कमाल की कविता लिखी है आपने तो …!
मंगलकामनाओं सहित…
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बस एक आंसू जो बंद था पलकों में
जवाब देंहटाएंगालों पर छलक आया है,
कहो तो आधा तुम्हें भिजवा दूं,
ऐसा ही कुछ तुम्हारे पास हो
तो आधा इधर भिजवा देना।
.....बहुत मर्मस्पर्शी और भावमयी प्रस्तुति....
सुन्दर मनोहारी रचना...बहुत बहुत बधाई...
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