एक दीवार बनाई थी मैंने
अपने और तुम्हारे बीच,
ईंट,पत्थर और रेत से,
मजबूत और ऊंची,
पर न जाने कहाँ से
आ जाती हैं उछलकर
उधर की हवाएं इधर,
ठन्डे पानी की बूँदें
और कभी-कभार
तुम्हारे बदन की खुशबू
और तुम्हारे साथ बिताए
शहदी पलों की यादें.
आओ, एक ऐसी दीवार बनाएं
जिसे फांद न सकें
पानी की बूँदें,
हवाओं के झोंके
तुम्हारी यादें-
कुछ भी नहीं.
अगर ऐसी दीवार न बन सके,
तो तोड़ दें यह दीवार,
जो खड़ी है मेरे और तुम्हारे बीच
बेवज़ह, बेमतलब...
सही है.......................
जवाब देंहटाएंइस पार या उस पार....................
बहुत सुंदर भाव ओंकार जी.
आओ, एक ऐसी दीवार बनाएं
जवाब देंहटाएंजिसे फांद न सकें
पानी की बूँदें,
हवाओं के झोंके
तुम्हारी यादें-
कुछ भी नहीं.
waah
गलतफहमियों से खड़ी, ऊंची बड़ी दीवार |
जवाब देंहटाएंजुल्फों की बूंदे उछल, खुश्बू आये पार |
अगर ऐसी दीवार न बन सके,
जवाब देंहटाएंतो तोड़ दें यह दीवार,
जो खड़ी है मेरे और तुम्हारे बीच
बेवज़ह, बेमतलब...
वाह!!!!!!बहुत सुंदर रचना,अच्छी प्रस्तुति........
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
wah..bahut khoob
जवाब देंहटाएंअनूठे बिम्ब प्रस्तुत किये हैं आपने अपनी रचना में...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
ऐसी दीवारों को तोड़ना ही अच्छा होता है ... आकाश तक ऊँची दिवार तो नहीं बन सकती ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
बहुत मुश्किल है ऐसी दीवार बनाना जो रोक सके यादों को... अनुपम विम्ब...बहुत सशक्त प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि आज दिनांक 09-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत खूबसूरत लगी पोस्ट....शानदार।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंkitna aasan hai kahna bhool jao...kitna mushkil hai dil ka bhulana....
जवाब देंहटाएंsach kaha...
बहुत खूब..
जवाब देंहटाएं