१७.मोहलत
बीते साल ने जाते-जाते मुझसे कहा,
"कितना वक़्त दिया मैंने,
पर कुछ भी नहीं हुआ तुमसे,
न कोई ख़ुशी, न कोई उत्साह,
न कुछ करने की ललक
अपने या किसी और के लिए,
जीवित होकर भी मृत बने रहे तुम,
बोझ बाँटने की जगह बोझ बने रहे,
मेरे विदा होते-होते
थोड़ा और पिछड़ गए तुम."
मैंने कहा,"कोशिश तो की थी,
पर कुछ कर नहीं पाया,
लगता है, समय कम पड़ गया,
थोड़ी मोहलत क्यों नहीं दी तुमने ?"
बीता साल हंसा और बोला,
"लो मान ली तुम्हारी बात,
आनेवाले साल में दे दिया
तुम्हें एक अतिरिक्त दिन,
चलो, अब तो कुछ करो."
बीते साल ने जाते-जाते मुझसे कहा,
"कितना वक़्त दिया मैंने,
पर कुछ भी नहीं हुआ तुमसे,
न कोई ख़ुशी, न कोई उत्साह,
न कुछ करने की ललक
अपने या किसी और के लिए,
जीवित होकर भी मृत बने रहे तुम,
बोझ बाँटने की जगह बोझ बने रहे,
मेरे विदा होते-होते
थोड़ा और पिछड़ गए तुम."
मैंने कहा,"कोशिश तो की थी,
पर कुछ कर नहीं पाया,
लगता है, समय कम पड़ गया,
थोड़ी मोहलत क्यों नहीं दी तुमने ?"
बीता साल हंसा और बोला,
"लो मान ली तुम्हारी बात,
आनेवाले साल में दे दिया
तुम्हें एक अतिरिक्त दिन,
चलो, अब तो कुछ करो."
साल दर साल मुहलत तो मिलाती है पर हम कुछ कर नहीं पाते ..बस अपनी नाकामी के बहाने बनाते रह जाते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ......
जवाब देंहटाएंWELCOME to--जिन्दगीं--
"लो मान ली तुम्हारी बात,
जवाब देंहटाएंआनेवाले साल में दे दिया
तुम्हें एक अतिरिक्त दिन,achchi prastuti.
बहुत सुन्दर...ज़िंदगी में एक दिन की मोहलत भी बहुत होती है...सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंएक लाभ के दिवा स्वप्न में
जवाब देंहटाएंमस्त रहें यही अच्छा है
एक वर्ष की उमर कम हुई
सोचेंगे तो क्या पायेंगे।