४. लकडहारे से
फेंक दो कुल्हाड़ी,
सुस्ता लो कुछ देर,
मेरे पत्तों की छाँव में.
काट रहे हो कब से मुझे,
थक गए होगे तुम,
छाले तक पड़ गए होंगे हाथों में.
अभी तो खड़ा हूँ मैं अपनी जगह,
पत्ते भी हैं हरे भरे,
पर कट चुका हूँ इतना
कि मरना तो अब तय है
और तय है पत्तों का सूख जाना.
अभी वक़्त है, सुस्ता लो छाँव में,
फिर काट लेना मुझे पूरी तरह,
भागकर कहीं नहीं जाऊँगा मैं,
जहाँ हूँ, वहीँ रहूँगा,
उस वक़्त भी तो खड़ा था चुपचाप,
जब तुमने मुझे काटना शुरू किया था.
denewala hamesha deta hai ...
जवाब देंहटाएंभागकर कहीं नहीं जाऊँगा मैं,
जवाब देंहटाएंजहाँ हूँ, वहीँ रहूँगा,
उस वक़्त भी तो खड़ा था चुपचाप,
जब तुमने मुझे काटना शुरू किया था.
उफ्फ़......
KYA KAHUN...MANTR MUGDH KAR DIYA AAPKI RACHNA NE...ADBHUT...WAAH...BADHAI SWIIKAREN.
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं मार्मिक चित्रण ..वाह
जवाब देंहटाएंव्रक्षों के दर्द को बहुत हे बढ़िया और मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। पढ़ते हुए ही ऐसा लगा जैसे मान मैं खुद महसूस कर रही हूँ उस दर्द को बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
http://mhare-anubhav.blogspot.com/