मैं तुमसे नहीं कहूँगा
कि आजकल चाय बनाते वक़्त
मेरे हाथ काँपते हैं,
यह भी नहीं कहूँगा
कि आजकल मेरे घुटनों में
बहुत दर्द रहता है.
मैं तुमसे नहीं कहूँगा
कि मुझे आँखों से
धुंधला-सा दिखता है
कि मैं कुछ भी चबाऊँ,
तो दाँत दुखते हैं.
मैं तुमसे नहीं कहूँगा
कि आजकल अकेले
बाहर निकलने में
मुझे डर लगता है,
कि मुझे हर समय
घेरे रहता है
एक अजीब-सा अवसाद.
मैं तुमसे नहीं कहूँगा
कि आजकल मुझे
चुभ जाती है
हर किसी की बात,
कि मैं महसूस करता हूँ
तन-मन से कमज़ोर.
मैं नहीं चाहता कि तुम्हें
खुलकर कुछ कहूँ,
पर मुझे अच्छा लगेगा,
अगर यह जानकर
तुम दुखी हो जाओ
कि इन दिनों मेरी हालत
कुछ ठीक नहीं है।
आहा ... क्या एहसास है ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ न कह कर सब कुछ कहना भी एक कला
जवाब देंहटाएंहै , लाजवाब सृजन ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 21 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंकाफी है अगर कोई हो ऐसा जीवन में जिसको अपने बारे में बताने का मन करे और फिर उसके दुख को देखकर छुपाने का भी मन करे।
जवाब देंहटाएंकाफी है... बहुत काफी है कि उसकी खुशी की इतनी चाहत हो कि उसे अपनी अपनी तकलीफ ना बताना चाहें ।
लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंवृद्धावस्था की हालत को बखूबी व्यक्त किया है, यथार्थवादी लेखन
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