११. अनछपी कविताएँ
देखो, जब मैं मरूं,
मेरी अनछपी कविताएँ
मेरी चिता पर रख देना,
पर ध्यान रहे,
वे मेरे साथ जल न जाएँ;
हवाएं जब उड़ायें मेरी राख,
देखना, वे बिखर न जाएँ.
मेरी अस्थियों का हो विसर्जन,
तो साथ हों मेरी अनछपी कविताएँ,
पर देखना, कहीं वे गल न जाएँ.
बहुत प्रिय हैं मुझे
अपनी तिरस्कृत कविताएँ,
नहीं सह पाऊंगा मैं
उनका और अपमान अपने बाद
और न ही उनका अंत.
देखो, जब मैं मरूं,
मेरी अनछपी कविताएँ
मेरी चिता पर रख देना,
पर ध्यान रहे,
वे मेरे साथ जल न जाएँ;
हवाएं जब उड़ायें मेरी राख,
देखना, वे बिखर न जाएँ.
मेरी अस्थियों का हो विसर्जन,
तो साथ हों मेरी अनछपी कविताएँ,
पर देखना, कहीं वे गल न जाएँ.
बहुत प्रिय हैं मुझे
अपनी तिरस्कृत कविताएँ,
नहीं सह पाऊंगा मैं
उनका और अपमान अपने बाद
और न ही उनका अंत.
रचना कोई भी हो... कविता कोई भी हो, हमेशा सम्मानीय है!
जवाब देंहटाएंकवि के मनोभावों को खूब व्यक्त करती है यह कविता... रचनाकार की वेदना की अप्रतिम अभिव्यक्ति!
सुन्दर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंबहुत प्रिय हैं मुझे
जवाब देंहटाएंअपनी तिरस्कृत कविताएँ,
नहीं सह पाऊंगा मैं
उनका और अपमान अपने बाद
और न ही उनका अंत... sachchiii nihshabd ker diya aapne ...
बहुत खूब सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर शब्द और अद्भुत भाव लिए अप्रतिम रचना ...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
हर रचना सुंदर है ....
जवाब देंहटाएंअपनी हर रचना अपनी अनमोल निधि सी ही लगती है ...
जवाब देंहटाएंभावमय प्रस्तुति !
वाह!!!
जवाब देंहटाएंकवि का दर्द झलक आया..
बहुत सुन्दर..
Bahut hi sundar likha hai sir
जवाब देंहटाएंmujhe bhi bahut priya hai apni kavitaye :) bahut sundar rachna
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही बहुत सी अनछपी कविताएं है... जिन्हें शब्द भी नही मिले है.....
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