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बुधवार, 16 दिसंबर 2020

५१४. मछुआरे से


मछुआरे,

तुम मझधार में गए थे,

तुम्हें तो लौट आना था,

पर तुम उस पार चले गए.

अब नहीं लौटोगे तुम इस पार,

अगर मुझे तुमसे मिलना है,

तो मुझे भी जाना होगा उस पार 

और अगर मैं गया,

तो मैं भी नहीं लौटूंगा कभी इस पार.

**

मछुआरे,

तुम मछली पकड़ने गए थे 

गहरे समुद्र में,

हर बार तो तुम लौट आते थे,

इस बार कौन से मोती मिले 

कि तुम लौटे ही नहीं?

**

मछुआरे,

इस बार मैं भी चलूँगा तुम्हारे साथ,

दूर समुद्र में जाएंगे,

ख़ूब मछलियाँ पकड़ेंगे,

पर मुझे तैरना नहीं आता,

तुम्हें बचाना आता है न?

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब। शुभकामनाएं। बधाई।

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    1. सादर नमस्कार,
      आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
      धन्यवाद.

      "मीना भारद्वाज"


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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 17 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. मछुआरे,
    तुम मझधार में गए थे,

    तुम्हें तो लौट आना था,

    पर तुम उस पार चले गए.

    अब नहीं लौटोगे तुम इस पार,

    अगर मुझे तुमसे मिलना है,

    तो मुझे भी जाना होगा उस पार

    और अगर मैं गया,

    तो मैं भी नहीं लौटूंगा कभी इस पार...बहुत सुंदर..भावों से भरी हुई पंक्तियाँ..।

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  5. तुम मछली पकड़ने गए थे

    गहरे समुद्र में,

    हर बार तो तुम लौट आते थे,

    इस बार कौन से मोती मिले

    कि तुम लौटे ही नहीं?

    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति।

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  6. बहुत खूब गहन भाव गहन व्यंजना ।

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