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शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

३०८. पीढियां

मेरी नानी चाहती थी 
कि कुछ आदतें  
उनसे उनकी बेटी को मिले, 
पर मेरी माँ ने मेरी नानी से 
थोड़ी-सी आदतें ही लीं.

मेरी माँ भी चाहती थी 
कि मैं उनसे अपनी नानी की 
थोड़ी-सी आदतें ले लूं,
पर या तो मैं ले नहीं पाई 
या लेना ही नहीं चाहती थी.

अब मुझमें मेरी नानी का 
खून तो बहुत है,
पर उनका कोई गुण,
कोई आदत
शायद ही मिले. 

हर अगली पीढ़ी 
पिछली पीढ़ी से 
इसी तरह अलग हो जाती है,
पीढ़ियों के बीच बस 
खून का रिश्ता चलता रहता है.

6 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ज़िन्दगी का हिसाब “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (22-04-2017) को "पृथ्वी दिवस-बंजर हुई जमीन" (चर्चा अंक-2947) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. ये रिश्ते भी जल्दी ख़त्म होने वाले हैं ... खून रंगहीन हो चला है अब ...

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  4. बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे Best Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak

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