मैं जिससे निकला हूँ,
असहज हूँ उससे,
कहाँ मैं कमल,
कहाँ वह कीचड़,
मैं ख़ुशबू से सराबोर,
वह बदबूदार।
कोई मेल नहीं
मेरा और उसका,
उसके साथ रहना
उतना बुरा नहीं लगता,
जितना उसके साथ दिखना।
काश कि मैं जा पाता
उससे बहुत दूर,
जैसे बच्चे चले जाते हैं
गाँव से शहर
कभी न लौटने के लिए।

बी जे पी हम में ही खिल रही है हजूर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में बुधवार, 15 अक्टूबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंऔर वे बच्चे कट जाते हैं अपने मूल से, हवा में लटके त्रिशंकु की तरह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंविडंबना । पर सीधा-सादा सच है । कीचड में ही खिलता कमल है । अभिनंदन।
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