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गुरुवार, 22 मई 2025

806. ट्रेन

 


दौड़ती चली जा रही है ट्रेन,

घुप्प अंधेरा है बाहर,

बेफ़िक्र सो रहे हैं यात्री,

कुछ, जो अभी-अभी चढ़े हैं,

सामान लगा रहे हैं अपना,

कुछ, जो उतरनेवाले हैं,

समेट रहे हैं अपना सामान,

कुछ बतिया रहे हैं,

कुछ बदल रहे हैं करवटें।


इन सबसे बेपरवाह 

भागी जा रही है ट्रेन,

एक ही धुन है उसकी-

अपने गंतव्य तक पहुँचना

और उन सबको पहुंचाना,

जो बैठे हैं उसके भरोसे।


6 टिप्‍पणियां:

  1. भागी जा रही है ट्रेन,
    एक ही धुन है उसकी
    अपने गंतव्य तक पहुँचना
    सुंदर रचना
    वंदन

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  2. बहुत सुन्दर शब्द चित्र ।

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 25 मई 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  4. वाह! सुन्दर भावाभिव्यक्ति!!

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  5. जीवन ऐसे ही है चला जा रहा है युगों से, अनवरत बिना परवाह किए कौन आया कौन गया

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