रेशम का कीड़ा अपनी लार से ककून बनाता है, उसी के कारण उबाला जाता है, मारा जाता है. आदमी रेशम के कीड़े से ज़्यादा लार टपकाता है, पर न जाने क्यों मरते हमेशा दूसरे ही हैं, वह ख़ुद साफ़ बच जाता है.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-08-2019) को "लेखक धनपत राय" (चर्चा अंक- 3415) पर भी होगी। -- चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है। जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। -- हार्दिक शुभकामनाओं के साथ सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 01 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-08-2019) को "लेखक धनपत राय" (चर्चा अंक- 3415) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर और सार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंवह मर कर भी रेशम देता है और यह जिंदा रह कर जाल बुनता है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंजाल तो उसके इर्द-गिर्द भी बन जाता है...लेकिन यहाँ हिसाब जन्मों में होता है...👌👌👌
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