अच्छा है,ख़ुद से मुलाक़ात हो जाती है,
चिड़ियों से बात हो जाती है,
फूलों के रंग देख लेते हैं,
सूरज का डूबना देख लेते हैं.
पर याद आते हैं लोगों के रेले,
हाट में लगे सब्जियों के ठेले,
एक दूजे से टकराकर निकलना,
खोमचों पर खाने के लिए मचलना.
अच्छा है, घरवालों के साथ रहते हैं,
बहुत कुछ कहते,बहुत कुछ सुनते हैं,
पर याद आता है,पार्टियों के लिए सजना
और घर की कॉल बेल का अचानक से बजना.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमगर अब तो लॉकडाउन अभिशाप बन गया है।
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
26/04/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2020) को शब्द-सृजन-18 'किनारा' (चर्चा अंक-3683) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही सुंदर सृजन सर
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति सर ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर । हर परिस्थिति को सकारात्मक दृष्टि से देखना ।
जवाब देंहटाएंसुंदर।
बहुत खूब ... यादें तो रहती हैं हर बात की ...
जवाब देंहटाएंकुछ खोना कुछ पाना ....वर्तमान परिस्थिति की सरल,सहज और सकारात्मक विवेचना.
जवाब देंहटाएंबढ़िया ओंकारजी !
उम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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