उस घर में एक लड़की थी,
सुन्दर-सी,मासूम-सी,
रह-रह कर खिलखिलानेवाली,
उसकी हंसी मोहल्ले में गूंजती थी.
बड़े सलीके से सजती थी वह,
रंगों का अच्छा सेंस था उसको,
दिल नहीं दुखाया उसने किसी का,
सबकी जान थी वह लड़की.
आज उस घर में धुआं भरा है,
लाशें बिछी हैं, खून बिखरा है,
लड़की के कपड़े फैले हैं घर में,
कहीं सलवार,कहीं कुरता,
कहीं कुछ,कहीं कुछ,
कहीं चूड़ी,कहीं बिंदी,
पर वह लड़की कहीं नहीं है.
सब कहते हैं,
मर गई है वह लड़की,
बस हो सकता है,
उसका शरीर ज़िन्दा हो.
निःशब्द इस रचना पर ... दिल को चीरती हुयी ...
जवाब देंहटाएंगहरी ...
हृदय को व्यथित और निशब्द करता सृजन ।।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-06-2019) को "पितृत्व की छाँव" (चर्चा अंक- 3369) (चर्चा अंक- 3362) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पिता दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय को व्यथित करती मार्मिक रचना |
जवाब देंहटाएंनि:शब्द
सादर
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 19 जून 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
मार्मिक..
जवाब देंहटाएंसादर...
बेहद दुखदाई स्थिति
जवाब देंहटाएंव्यथित करने वाले शब्द...
जवाब देंहटाएंअंतस को छूती बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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