शनिवार, 15 जून 2019

३६३. दंगों में लड़की

Sad, Depressed, Depression, Sadness

उस घर में एक लड़की थी,
सुन्दर-सी,मासूम-सी,
रह-रह कर खिलखिलानेवाली,
उसकी हंसी मोहल्ले में गूंजती थी.

बड़े सलीके से सजती थी वह,
रंगों का अच्छा सेंस था उसको,
दिल नहीं दुखाया उसने किसी का,
सबकी जान थी वह लड़की.

आज उस घर में धुआं भरा है,
लाशें बिछी हैं, खून बिखरा है,
लड़की के कपड़े फैले हैं घर में,
कहीं सलवार,कहीं कुरता,
कहीं कुछ,कहीं कुछ,
कहीं चूड़ी,कहीं बिंदी,
पर वह लड़की कहीं नहीं है.

सब कहते हैं,
मर गई है वह लड़की,
बस हो सकता है,
उसका शरीर ज़िन्दा हो.

10 टिप्‍पणियां:

  1. निःशब्द इस रचना पर ... दिल को चीरती हुयी ...
    गहरी ...

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  2. हृदय को व्यथित और निशब्द करता सृजन ।।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-06-2019) को "पितृत्व की छाँव" (चर्चा अंक- 3369) (चर्चा अंक- 3362) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    पिता दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. हृदय को व्यथित करती मार्मिक रचना |
    नि:शब्द
    सादर

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 19 जून 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  6. अंतस को छूती बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति...

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