वे हर साल दशहरे पर
रावण का पुतला जलाते हैं,
पर अगले साल उन्हें
बड़े क़द का रावण चाहिए,
वे ख़ुद नहीं जानते
कि वे चाहते क्या हैं,
रावण को जलाना
या उसका क़द बढ़ाना.
***
हर साल जुटते हैं
लाखों-करोड़ों लोग
रावण का पुतला जलाने,
पर न जाने क्यों
अगले साल बढ़ जाता है
रावण का क़द,
मैंने कभी बढ़ते नहीं देखा
जलानेवालों का क़द.
***
दस सिर हैं रावण के,
क़द भी बहुत बड़ा है,
पर डरो मत,
एक चिंगारी की देर है,
धधक उठेगा रावण,
जलकर राख हो जाएगा
बस ज़रा-सी देर में.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 27 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअगले साल बढ़ जाता है
जवाब देंहटाएंरावण का क़द,
मैंने कभी बढ़ते नहीं देखा
जलानेवालों का क़द
–सत्य सार्थक भावाभिव्यक्ति
गहन भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर ,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर और रोचक भावाभिव्यक्ति। जिस तरह आपने बढ़ते हुए रावण के कद को हमारे समाज व् देश में बढ़ती बुराइयों का प्रतीक बनाया है, वह बहुत ही सटीक है और हमें सोंचने पर विवश करता है।
जलाने वालों का कद तो सच में नहीं बढ़ता। पर यह भी सच है जलाने वालों के कद को बढ़ने की आवश्यकता ही नहीं है क्यूंकि मनुष्य यदि अपने आस पास के या अपने भीतर के रावण को जलाने की ठान ले , तो वः जल ही जाएगा। कद बढ़ने पर भी रावण रूपी बुराइयों के पास नहीं होती। सुन्दर रचना हृदय से आभार व् आपको सादर नमन।
आपसे अनुरोध है कृपया पर भी आएं। आपके प्रोत्साहन एवं आशीष के लिए आभारी रहूंगी।
आप मेरे नाम तो मेरे प्रोफाइल पर आ जाएँँगे ,वहां मेरे ब्लॉग के नाम कवितरंगिनी पर क्लिक करियेगा। आप मेरे ब्लॉग पर पहुंच जाएँगे । पुनः प्रणाम।
नमस्कार ओंकार जी, आपकी इस कविता पर बार बार सोचने को बाध्य हो रहे हैं हम कि सच में वे चाहते क्या हैं,
जवाब देंहटाएंरावण को जलाना
या उसका क़द बढ़ाना....वाह
बहुत बढ़िया विश्लेषण
जवाब देंहटाएंसत्य की गहराइयों में उतरता हुआ लेखन - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसत्य को आईना दिखाती रचना,बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय ओंकार जी, सच है रावण का कद हर साल बढ़ जाता है। और यह भी सच है, कि उसका कद उसे जलाने वाले ही बढ़ा देते हैं।
जवाब देंहटाएंअगले साल बढ़ जाता है
रावण का क़द,
मैंने कभी बढ़ते नहीं देखा
जलानेवालों का क़द.
साधुवाद !--ब्रजेन्द्रनाथ
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