क्या तुम्हें पता है,
हमारे रिश्ते का पलस्तर
थोड़ा-थोड़ा झड़ने लगा है,
दीवार की इक्का-दुक्का ईंट
ज़रा-ज़रा हिलने लगी है,
फीकी पड़ने लगी है
रंगों की चमक,
एकाध टाइल कहीं-कहीं
चटखने लगी है,
फ़र्श कहीं-कहीं धंसने लगा है,
ज़मीन कहीं-कहीं झलकने लगी है.
चलो, अब चेत जांय,
ज़रा-सा डर जांय,
टूट-फूट का आकलन कर लें,
कहीं देर न हो जाय.
इतना तो मैं जानता हूँ,
तुम्हें भी तो पता है
कि रिश्ते और इमारत की मरम्मत
जितनी जल्दी हो जाय,
उतना अच्छा है.
हमारे रिश्ते का पलस्तर
थोड़ा-थोड़ा झड़ने लगा है,
दीवार की इक्का-दुक्का ईंट
ज़रा-ज़रा हिलने लगी है,
फीकी पड़ने लगी है
रंगों की चमक,
एकाध टाइल कहीं-कहीं
चटखने लगी है,
फ़र्श कहीं-कहीं धंसने लगा है,
ज़मीन कहीं-कहीं झलकने लगी है.
चलो, अब चेत जांय,
ज़रा-सा डर जांय,
टूट-फूट का आकलन कर लें,
कहीं देर न हो जाय.
इतना तो मैं जानता हूँ,
तुम्हें भी तो पता है
कि रिश्ते और इमारत की मरम्मत
जितनी जल्दी हो जाय,
उतना अच्छा है.
रिश्तों की मरम्मत प्रेम के एहसास को फिर से जगाने से होगी ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ...
सही कहा आपने ...
जवाब देंहटाएं:)
कल 05/12/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीय
waah...bahut hi badhiya likha hai aapne sir :)
जवाब देंहटाएंरिश्ते और इमारत की मरम्मत
जवाब देंहटाएंजितनी जल्दी हो जाय,
उतना अच्छा है.
बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना ....!
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नई पोस्ट-: चुनाव आया...
बहुत सुंदर.......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 07/12/2013 को चलो मिलते हैं वहाँ .......( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 054)
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
समय रहते रिश्तों की इमारत की मरम्मत ज़रूरी है...बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक कहा है.
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