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शनिवार, 28 दिसंबर 2019

३९३.घर

Home, House, Silhouette, Icon, Building

मुझे लगता है 
कि जब मैं घर पर नहीं होता,
मेरे घर की दीवारें 
आपस में ख़ूब बातें करती हैं.

खिड़कियाँ,रोशनदान,
सब शामिल हो जाते हैं गप्पों में,
दरवाज़े भी हँसने लगते हैं.

मैं जब घर पर रहता हूँ,
तो सब चुप रहते हैं,
उतरे हुए होते हैं उनके चेहरे,
सब मेरे जाने का इंतज़ार करते हैं.

मुझे अच्छा नहीं लगता,
उन्हें दुखी देखना,
अक्सर मैं सोचता हूँ 
कि अबकी बार निकलूँ ,
तो वापस घर न लौटूं.

मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

३९२. सांता से

Christmas, Claus, Comic Characters

सांता,
तुम क्रिसमस पर हर साल आते हो,
तरह-तरह के उपहार लाते हो-
टॉफ़ी,बिस्कुट और न जाने क्या-क्या.

इस बार आओ, तो उपहारों के साथ 
चुनिन्दा संस्कार भी ले आना,
टॉफ़ी,बिस्कुट तो ख़त्म हो जाएंगे,
पर संस्कार शायद जड़ें जमा लें
और आज के बच्चे कल बड़े होकर 
शायद आज के बड़ों से कुछ अलग हों.

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

३९१. मज़बूत औरतें

People, Woman, Travel, Adventure, Trek

मज़बूत औरतों,
ज़रा संभल के रहना,
कमज़ोर औरतों से 
अब वे ऊब चुके हैं.

उनके पुरुषत्व ने उन्हें 
नई चुनौती दी है,
अब उन्हें काबू करना है 
उन औरतों को,
जो कमज़ोर औरतों के लिए 
आवाज़ उठाती हैं.

उन्हें साबित करना है 
कि वे मज़बूत औरतों को 
कमज़ोर बना सकते हैं.

मज़बूत औरतों,
तुम्हें बस इतना करना है 
कि मज़बूत बने रहना है 
और कमज़ोर औरतों को 
अपने जैसा बनाना है. 

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2019

३९०. दिसम्बर का एक दिन

Winter, Fog, Outside, Cold, Branches

बालकनी में बैठकर धूप सेकना,
गुड़ में पगे  तिल के लड्डू खाना,
मूँगफलियाँ छीलकर दाने चबाना,
मूली के गर्मागर्म पराठे सटकाना. 

अदरकवाली चाय की ख़ुश्बू ,
घी में सिकते हलवे की महक,
टमाटर का सूप,संतरे का रस,
मक्के की रोटी,सरसों का साग. 

सूरज को छकाती अलसाई-सी सुबह,
पत्तों पर ठहरीं ओस की बूँदें,
शॉल में लिपटी सुरमई-सी शाम,
रजाई में दुबकी ठंडी-सी रात. 

इस मौसम में आपके पास इतना कुछ है,
तो आपसे धनी और कौन है?

शनिवार, 30 नवंबर 2019

३८९. अमृत

Beverage, Cappuccino, Coffee, Breakfast, Caffeine

मन पर लगाम कस के,
कई दिनों की कोशिशों से
उस लड़की ने जुटाए हैं 
एक कप कॉफ़ी के पैसे.

टॉफ़ी खाई है कई बार उसने,
कोक भी पीया है एक बार,
बस कॉफ़ी ही नहीं चखी है-
सुन्दर से कप में परोसी, 
गर्मागर्म झागवाली कॉफ़ी.

बहुत ख़ुश है आज वह लड़की,
आख़िर वह भी चखेगी कॉफ़ी,
देर तक महसूस करेगी उसका स्वाद,
घूँट-घूँट उतारेगी गले से नीचे,
आज महसूस करेगी वह 
कि अमृत का स्वाद कैसा होता है.

शनिवार, 23 नवंबर 2019

३८८.गिलहरी और पेड़

Squirrel, Young, Young Animal, Mammal

छोटी-सी गिलहरी 
दौड़ती-भागती रहती है
ऊंचे पेड़ की शाखों पर,
पेड़ को गुदगुदी होती है,
पर कुछ नहीं कहता वह,
उसके पत्ते हिलते हैं,
वह बस हँसता रहता है.

शनिवार, 16 नवंबर 2019

३८७.सड़कें

Winding Road, Road, Travel, Sunrise

बेघर होती हैं सड़कें,
बारिश में भीगती हैं,
ठण्ड में ठिठुरती हैं,
धूप में तपती हैं सड़कें.

जूतों तले दबती हैं,
टायरों तले कुचलती हैं,
थूक-पीक झेलती हैं,
ख़ामोश रहती हैं सड़कें.

मरी-सी लेटी रहती हैं,
जीवन चलता है उनपर,
ख़ुद तो नहीं चलतीं,
दूसरों को चलाती हैं सड़कें.

जब भी कभी सांस आती है,
ध्रुवतारा खोजती हैं सड़कें,
सूनी आँखों से ऊपर देखती हैं,
मंज़िल तलाशती हैं सड़कें.

शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

३८६.सूरज

Sunrise, Sun, Morgenrot, Skies

घर की बालकनी से मैं
सूरज को ताकता हूँ,
सूरज मुस्कराता है,
पूछ्ता है,'उठ गए ?
मैं भी उठ गया.'

लाल गुलाल सी किरणें 
मेरे चेहरे पर
मल देता है सूरज. 

मैं कमरे में लौटता हूँ,
आईने में देखता हूँ,
चेहरा तो साफ़ है,
पर महसूस करता हूँ 
कि  रंग दिया है सूरज ने 
कहीं गहरे तक मुझे. 

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

३८५. दिल्ली

Qutubminar, Delhi, Architecture, Indian

लाल किले जितना बड़ा 
दिल्लीवालों का दिल,
यमुना जैसा छिछला 
उनका गुस्सा,
क़ुतुब मीनार जितनी ऊंची 
उनकी सोच,
जामा मस्जिद जैसे पाक 
उनके इरादे.

क्या आपको लगता है 
कि आप उस दिल्ली में हैं,
जिसमें ऐसे लोग रहते हैं?

शनिवार, 12 अक्तूबर 2019

३८४. इस बार

इस बार मिलने आऊँ,
तो ए .सी. बंद कर देना,
खिड़कियाँ खोल देना,
आने देना अन्दर तक
बारिश में भीगी हवाएं.

मत बनाना मेरे लिए पकवान,
झालमुड़ी का एक दोना बहुत होगा,
काजू, पिस्ता,बादाम नहीं,
थोड़ी-सी मूंगफली मंगवा लेना.

फिर चलेंगे गली के नुक्कड़ पर
उसी पुराने लैम्पपोस्ट के पास,
बातें करेंगे घंटों खड़े होकर,
भूल जाएंगे घुटनों का दर्द.

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2019

३८३. बोलो

बोलो 
कि चुप रहना ज़रूरी नहीं है,
न ही यह तुम्हारे हित में है.

हो सकता है, 
तुम्हारे चुप रहने से 
यह मान लिया जाय 
कि तुम्हें बोलने की ज़रूरत ही नहीं 
और तुम्हारी जीभ काट ली जाय.

यह भी हो सकता है 
कि आज तुम्हारे चुप रहने से 
दूसरे लोग तब चुप रहें,
जब उनका बोलना 
तुम्हारे लिए बेहद ज़रूरी हो.

डरो मत, बोलो,
गूंगे भी चुप नहीं रहते,
तुम्हारे मुंह में तो फिर भी ज़ुबान है.

शनिवार, 28 सितंबर 2019

३८२. सोने दो उसे

वह आदमी,
जो फुटपाथ पर सोया है,
सोने दो उसे,
तंग मत करो.

नींद में उसे पता नहीं 
कि नर्म बिस्तर पर नहीं है वह,
गाड़ियों का शोर-शराबा 
उसे छू भी नहीं रहा,
याद नहीं उसे वे दर्द,
जो उसने सहे हैं.

सपने,जो वह देख रहा है,
जागते में नहीं देख सकता,
उसके होंठों पर अभी 
एक दुर्लभ-सी मुस्कान है,
अपने सबसे हसीन पल
अभी जी रहा है वह.

सोने दो उसे,
बेवज़ह तंग मत करो,
इस समय उसे नींद से जगाना 
एक ऐसा अपराध होगा,
जिसे माफ़ करना मुश्किल होगा.

शनिवार, 21 सितंबर 2019

३८१. खेल

Kite, Toy, Boy, Green, Blue, Child, Joke

सुन्दर पतंग डोर से कटकर 
किसी पेड़ में अटक जाती है,
तो बच्चे लंबे बांस लेकर 
उस पर झपट पड़ते हैं.

बच्चे जानते हैं  
कि पतंग का सलामत मिल पाना 
लगभग असंभव है,
पर बाज नहीं आते.

छीना-झपटी में जब 
पतंग फट जाती है,
तो उसके लिए मचल रहे बच्चे 
उसे पांवों से कुचलकर 
हँसते हुए आगे बढ़ जाते हैं.

पतंग की मौत 
बच्चों के लिए एक खेल है,
इससे ज़्यादा और कुछ भी नहीं.

शनिवार, 14 सितंबर 2019

३८०.कूड़ा

अगर तुम्हें कहीं चिंगारी मिले,
तो मुझे दे देना,
बहुत सारा कूड़ा फैला है मेरे इर्द-गिर्द,
उसे जमा करना है,
जलाना है उसे.

कुछ धुआं तो निकलेगा,
थोड़ा प्रदूषण भी फैलेगा,
पर कोई दूसरा उपाय नहीं है,
कूड़ा इतना ज़्यादा है 
कि सफ़ाई संभव ही नहीं है. 

जब सब कुछ जल जाएगा,
ज़मीन समतल हो जाएगी,
तो नए तरीक़े से नया निर्माण होगा,
जिसमें न कूड़े के लिए जगह होगी,
न कूड़ा फैलानेवालों के लिए.



शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

३७९. चींटियाँ

Red Ant, Ant, Macro, Insect, Ant, Ant

चींटियाँ कहीं भी,
किसी के भी 
पांवों तले दब जाती हैं,
इतनी छोटी होती हैं वे 
कि दिखाई ही नहीं पड़तीं.

वे आगाह भी करती हैं ,
तो किसी को पता नहीं चलता,
उनकी चीख़ें नहीं पहुँचती 
कुचलनेवालों के कानों तक.

किसी को फ़र्क नहीं पड़ता 
चींटियों के मर जाने से,
पर चींटियों का जन्म हुआ है,
तो उन्हें जीने का हक़ है,
जीने के लिए लड़ने का हक़ है.  

अगर चींटियों को जीना है,
तो उन्हें बनाना होगा अलग रास्ता,
ऊंची करनी होगी आवाज़
और काट खाना होगा उन पांवों को,
जिनके नीचे दबकर वे दम तोड़ देती हैं.

रविवार, 1 सितंबर 2019

३७८. ख़ुशी

मैं तुमसे बस इतना चाहता हूँ 
कि तुम हमेशा ख़ुश रहो,
तुम्हारी ख़ुशी आधी-अधूरी नहीं, 
पूरी हो, भरपूर हो,
जैसी किसी माँ के चेहरे पर 
तब दिखाई पड़ती है,
जब डॉक्टर उससे कहता है 
कि उसका मरणासन्न बच्चा 
अब ख़तरे से बाहर है.

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

३७७. किताबें

Books, Stack, Book Store, Stack Of Books
उस दिन मैंने देखा,
कबाड़ी के सामान में 
कुछ पुरानी किताबें थीं,
तुड़ी-मुड़ी, पीली-सी,
कुछ किताबें स्वस्थ भी थीं,
मेन्टेन कर रखा था उन्होंने ख़ुद को.

कातर नज़रों से मुझे 
देख रही थीं किताबें,
सुबक-सुबक कर कह रही थीं,
हमें ख़रीद लो किलो के भाव,
सजा देना अपने बुक-शेल्फ़ में,
भले पढ़ना मत.

किताबें कह रही थीं,
जब हमें फाड़ा जाता है
और हमारे पन्नों में 
भेलपुरी परोसी जाती है,
तुम्हें क्या बताएं,
हमें कितना दर्द होता है?

रविवार, 18 अगस्त 2019

३७६. इतवार

Bird, Yellow, Nature, Colorful, Branch

एक छोटी-सी चिड़िया 
मुंह अँधेरे उठ गई,
नाचने लगी,गाने लगी,
खुशियाँ मनाने लगी.

आज भी उसे काम करना है,
आज भी उसे उड़ना है,
पर उसका मन प्रसन्न है
कि कोई उबाऊ वार नहीं,
आज इतवार है.

गुरुवार, 15 अगस्त 2019

३७५. पतंग

Kite, Fly, Wind, Fun, Kite, Kite, Kite

दुकानों में सजी पतंगें 
बहुत ललचाती हैं,
पर उनसे ज़्यादा ललचाती हैं 
वे पतंगें,जो कट जाती हैं.

ऐसी पतंगों के पीछे 
लोग पागल हो जाते हैं,
उन्हें लूटने के लिए 
अंधाधुंध दौड़ते हैं,
लड़ते हैं, झगड़ते हैं.

दरअसल यह पागलपन 
पतंग उड़ाने के लिए नहीं.
बेसहारा पतंगों को 
हासिल करने के लिए होता है.

तभी तो इस आपाधापी में 
अक्सर पतंगें तार-तार हो जाती हैं,
जिसके भी हाथ लगती हैं,
पूरी नहीं लगतीं.

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

३७४. उसका बोलना

Girl, Face, Colorful, Colors, Artistic

वह बोलती बहुत है,
पर जब बोलती है,
कोई आवाज़ नहीं होती,
उसे नहीं चाहिए 
शब्दों का सहारा,
उसकी आँखें ही बहुत हैं 
बोलने के लिए.

मुझे डर है कि कभी वह 
मुँह से भी बोलने लगे,
तो लोग सुन नहीं पाएंगे.

सुननेवालों को अगर जीना है,
तो बहुत ज़रूरी है 
कि वह सिर्फ़ आँखों से बोले,
अपना मुँह बिल्कुल न खोले.

बुधवार, 7 अगस्त 2019

३७३.परिवर्तन

मेरे गाँव में अब 
पढ़े-लिखे रहते हैं,
हिंदी समझते हैं,
पर अंग्रेज़ी कहते हैं.

बैठकर बातचीत अब 
कम ही होती है,
व्हाट्सएप्प-फ़ेसबुक से 
रिश्ते निभते हैं.

अब नहीं दिखते यहाँ 
रिक्शा-साइकिल,
जिन्हें भी चलना हो,
गाड़ियों में चलते हैं.

पक्की सड़कों के बीच 
कुछ कच्चे रास्ते हैं,
मेरे गाँव में अब 
वे गुमसुम से रहते हैं.

शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

३७२. घर में प्रकृति

Painting, Oil On Canvas, Artistic

मेरे घर के आसपास 
कोई पेड़ नहीं,
कोई परिंदा नहीं,
कोई नदी नहीं,
कोई झरना नहीं.

घर की दीवार पर मैंने
एक पेंटिंग लगा ली है,
जिसमें जंगल है,
नदी है,
झरना है,
पेड़ है,
घोंसला है,
परिंदे हैं.

अब अपने घर में बैठे-बैठे 
मैं सब कुछ देख लेता हूँ,
अब मुझे घर से निकलने की 
ज़रूरत ही नहीं पड़ती.

बुधवार, 31 जुलाई 2019

३७१. लार

Silkworm, Cocoon, Insect, Silk, Nature

रेशम का कीड़ा 
अपनी लार से 
ककून बनाता है,
उसी के कारण 
उबाला जाता है,
मारा जाता है.

आदमी रेशम के कीड़े से 
ज़्यादा लार टपकाता है,
पर न जाने क्यों 
मरते हमेशा दूसरे ही हैं,
वह ख़ुद साफ़ बच जाता है.

शुक्रवार, 26 जुलाई 2019

३७०. बारिश से

Air, Sky, Cloud, Background, Clouds

बारिश,
क्यों आई हो यहाँ,
चली जाओ.

कहाँ थी तुम,
जब निर्दयी सूरज
जला रहा था हमें,
जब फट रही थी ज़मीन
प्यास के मारे,
सूख रही थीं
नदियाँ,बावड़ियाँ,
ख़ाली हो रहे थे
तालाब,कुएँ ?

तब तो तांडव कर रही थी तुम
बिहार,आसाम में,
पानी फेर रही थी
लुटे-पिटे लोगों की
बची-खुची उम्मीदों पर.

बारिश,
सब कुछ डुबो कर भी
जी नहीं भरा तुम्हारा?
नरभक्षी कैसे हो गई तुम,
कैसी भूख है तुम्हारी?
क्या पानी से प्यास नहीं बुझी
कि खून भी पीने लगी तुम?

बारिश,
क्यों आई हो यहाँ,
चली जाओ,
तुम्हारे मचाए हाहाकार के बीच
अब ये टिप-टिप,टापुर-टुपुर
मुझे अच्छी नहीं लगती.

रविवार, 21 जुलाई 2019

३६९. जूते

Shoes, Men, Footwear, Fashion

नया जूता थोड़ा-बहुत काटता है,
पर लगातार पहनते रहो,
तो ठीक हो जाता है,
छोड़ दो, तो और अकड़ जाता है.

कुछ जूते बहुत ज़िद्दी होते हैं,
कई दिनों तक काटना नहीं छोड़ते,
पर आखिर में ठीक हो जाते हैं,
बस थोड़ी तकलीफ़ सहना,
थोड़ा सब्र करना पड़ता है.

कुछ लोग भी जूतों की तरह होते हैं,
काटने से बाज नहीं आते,
उनसे वैसे ही निपटना पड़ता है,
जैसे जूतों से निपटा जाता है.

बुधवार, 17 जुलाई 2019

३६८. बारिश


Geranium, Cranes-Bill, Pelargonium

आज बहुत तेज़ बरसा पानी,
धूल-सने पत्ते जमकर नहाए,
गहरी भीग गईं सूखी डालियाँ.

तृप्त हो गईं प्यासी जड़ें,
कलियों ने चुपके से मुंह खोल
गटक लिया थोड़ा-सा पानी.

बारिश रुकने के बाद देर तक
फूलों ने पंखुड़ियों पर थामे रखीं
पानी की दस-बीस बूँदें,
जैसे कि प्यास बुझ गई हो,
पर मन अभी भरा नहीं हो.

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

३६७. भुतहा इमारत

इमारत बहुत उदास है.

न किसी बच्चे की हंसी,
न पायल की छमछम,
न किसी बूढ़े की खांसी,
न कोई कूकर की सिटी,
न बर्तनों की खड़खड़ाहट.

न कोई जन्मा यहाँ,
न कोई मरा,
न कोई कराहा,
न कोई सिसका.

कुछ भी नहीं हुआ यहाँ,
जब से यह भुतहा कहलाई.

इमारत अकेली है,
बहुत उदास है,
सोचती है,
'काश,कोई और नहीं,
तो भूत ही बसते मुझमें.' 



शुक्रवार, 5 जुलाई 2019

३६६. राजधानी का दुःख

मैं राजधानी ट्रेन हूँ,
कहने को राजधानी हूँ,
पर बहुत दुखी हूँ.

मैं गाँव-देहात से होकर 
गुज़रती ज़रूर हूँ,
पर वहां रुकती नहीं,
वहां के लोगों से 
कभी मिलती नहीं,
बस धड़धड़ाकर
आगे निकल जाती हूँ,
जैसे कि मैंने उन्हें 
देखा ही नहीं.

चलती रहती हूँ मैं,
अपने लिए सोचने का 
समय ही कहाँ है,
बड़े स्टेशन आते हैं,
तो ज़रा-सी रुक जाती हूँ,
फिर चल पड़ती हूँ,
जैसे बेमन से रुकी थी.

लोग न जाने क्या समझते हैं,
पर सच में मेरी चलती,
तो मैं राजधानी नहीं,
पैसेंजर होना पसंद करती. 

शुक्रवार, 28 जून 2019

३६५. घास

Countryside, Grass, Grassland, Hill

मैं घास हूँ,
मुझे बोना नहीं होता,
न ही गड्ढा खोदकर 
मुझे रोपना होता है,
न मुझे खाद चाहिए,
न कोई ख़ास देखभाल.

मैं छोटी सही,
गहरी न सही मेरी जड़ें,
पर मैं तिरस्कृत,उपेक्षित,
कहीं भी उग सकती हूँ,
कठोर चट्टानों पर भी.

मुझे कम मत समझना,
मैं जो कर सकती हूँ,
बरगद और पीपल 
कभी नहीं कर सकते.

शनिवार, 22 जून 2019

३६४. इच्छाएँ

Fall, Autumn, Red, Season, Woods, Nature

इच्छाएँ घुमावदार जंगल जैसी हैं,
पहले थोड़ी सी दिखती हैं,
जब वहां पहुँच जाओ,
तो थोड़ी और दिखने लगती हैं,
उनके आगे फिर थोड़ी और.

यह सिलसिला चलता ही रहता है,
इच्छाओं का जंगल कभी ख़त्म नहीं होता.

शनिवार, 15 जून 2019

३६३. दंगों में लड़की

Sad, Depressed, Depression, Sadness

उस घर में एक लड़की थी,
सुन्दर-सी,मासूम-सी,
रह-रह कर खिलखिलानेवाली,
उसकी हंसी मोहल्ले में गूंजती थी.

बड़े सलीके से सजती थी वह,
रंगों का अच्छा सेंस था उसको,
दिल नहीं दुखाया उसने किसी का,
सबकी जान थी वह लड़की.

आज उस घर में धुआं भरा है,
लाशें बिछी हैं, खून बिखरा है,
लड़की के कपड़े फैले हैं घर में,
कहीं सलवार,कहीं कुरता,
कहीं कुछ,कहीं कुछ,
कहीं चूड़ी,कहीं बिंदी,
पर वह लड़की कहीं नहीं है.

सब कहते हैं,
मर गई है वह लड़की,
बस हो सकता है,
उसका शरीर ज़िन्दा हो.

शुक्रवार, 7 जून 2019

३६२. बेटी और गुड़िया

Doll, Art, Abstract, Vintage, Girl

अपनी बेटी के लिए
एक गुड़िया ख़रीदी मैंने,
अच्छी लगती थी वह मुझे,
कभी मुंह नहीं खोला उसने,
महीनों कोने में रख दो,
तो भी चुप रहती थी वह.

कभी किसी से मिलने की 
ज़िद नहीं की उसने,
न प्यार किया,न गुस्सा,
न रोई, न चिल्लाई,
कभी कुछ नहीं माँगा,
कभी विरोध नहीं किया,
हमेशा गुड़िया ही रही वह.

अब मैंने बेटी की शादी कर दी है,
विदा कर दिया है उसे,
पर गुड़िया को अपने साथ रखा है,
मुझे बेटी से ज़्यादा गुड़िया से प्यार है.

शुक्रवार, 31 मई 2019

३६१. ख़लल

Alarm Clock, Classic, Clock, Dial, Gold

मेरे कमरे की दीवार पर एक घड़ी है,
जो हमेशा चलती ही रहती है,
कोई उसकी ओर देखे या न देखे.

कभी-कभार मुझे ज़रूरत पड़ती है,
तो मैं उसकी ओर देख लेता हूँ,
वह सही समय बता देती है,
फिर मैं उसे भूल जाता हूँ.
रात को उसकी टिक-टिक गूंजती है,
तो अलमारी में रख देता हूँ उसे.

चलते रहनेवालों को क्या मालूम 
कि उनके चलने से कभी-कभी 
सोनेवालों की नींद में ख़लल पड़ता है.

शनिवार, 25 मई 2019

३६०.गाँव पर कविता

मुझे याद आता है अपना गाँव,
जहाँ मेरा जन्म हुआ,
मेरा बचपन बीता.

वहां की पगडण्डियां,
गलियां,चौराहे,
बैलगाड़ियाँ,लालटेनें,
मंदिर की घंटियाँ,
पान की दुकान,
छोटा सा रेलवे स्टेशन 
और वहां के लोग याद आते हैं.

मैं चाहता हूँ 
कि गाँव के लिए कुछ करूँ,
पर शहर के चंगुल में हूँ,
वह छोड़ता ही नहीं मुझे,
या शायद मैं ही नहीं छोड़ता उसे.

अकसर ख़यालों में 
मैं अपने गाँव पहुँच जाता हूँ,
शहर में बैठकर 
मैं गाँव पर कविता लिखता हूँ.

शनिवार, 18 मई 2019

३५९. सफ़र

उसका घर-बार,
धन-संपत्ति,
ज़मीन-जायदाद,
सब कुछ छिन गया,
कुछ भी नहीं बचा,
जिसे वह अपना कह सके.

जिन्होंने छीना,
वे कहा करते थे 
कि बहुत भला है वह,
अब सब कहते हैं,
बहुत भोला है वह.

सब कुछ लुटाकर 
उसने तय किया है-
भला होने से 
भोला होने तक का सफ़र. 

शुक्रवार, 10 मई 2019

३५८.सीलन

अपनी शादी के बाद 
चाव से बनवाया था उसने 
यह खूबसूरत घर,
इसी में जन्मा था उसका बेटा,
यहीं से गया था विदेश,
इसी में वह बूढ़ी हुई,
इसी में विधवा.

अब इस घर की छत में,
यहाँ की दीवारों में 
बहुत सीलन है,
मिस्त्री हैरान हैं कि 
घर में इतने आंसू 
आते कहाँ से हैं 
कि सीलन जाती ही नहीं.

शनिवार, 4 मई 2019

३५७. खिड़कियों पर लड़कियां

इस घर के सामने 
एक जीवंत गली है,
पर सामने की ओर 
न खिड़की है,
न रोशनदान,
बस एक दरवाज़ा है,
जो बंद रहता है.

इस घर में खिड़कियाँ 
पीछे की ओर हैं,
जिनसे झांको,
तो ठीक सामने 
दीवार नज़र आती है.

इन खिड़कियों से 
मुश्किल से घुसती है 
थोड़ी-सी हवा,
ज़रा-सी धूप.

घर की लड़कियां दिन भर 
इन्हीं खिड़कियों पर बैठी रहती हैं.

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

३५६. माँ की खोज


उस लड़की ने कभी नहीं देखा 
अपनी माँ को,
पर माँ तो उसकी रही ही होगी
कभी-न-कभी,कहीं-न-कहीं,
उदास रहती थी वह लड़की,
खोजा करती थी अपनी माँ को.

एक दिन किसी लोकगीत में 
उसे मिल गई उसकी माँ,
अब वह लड़की हर वक़्त 
वही गीत गुनगुनाती है,
लोग उसे पागल समझते हैं.

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

३५५. इंजन


जब तक मैं डिब्बे में था,
मुझे लगता था,
मेरा डिब्बा ही ट्रेन है,
बस यही चल रहा है 
और ख़ुद-ब-ख़ुद चल रहा है.

जब नीचे उतरा,
तो पता चला 
कि गाड़ी में कई डिब्बे थे,
मेरा तो बस उनमें से एक था,
सारे डिब्बे चल रहे थे,
पर ख़ुद-ब-ख़ुद नहीं,
एक इंजन था आगे-आगे,
जो सबको चला रहा था.

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

३५४.न्याय


अगर सूरज हो,
तो बाहर आओ,
बादलों में दुबके रहोगे,
तो कोई नहीं पूछेगा तुम्हें.

पहाड़ों के पीछे से,
समुद्र के पार से,
जहाँ से भी निकल सको,
अपने पूरे सौंदर्य में निकलो.

कुंकुम बिखेर दो
धरती के कण-कण पर,
दूर भगा दो अँधेरा,
जान डाल दो 
ठिठुरी हुई हड्डियों में.

फिर भी अगर होने लगे 
तुम्हारी उपेक्षा,
तो टेढ़ी करो ऊँगली,
सिर पर चढ़ जाओ,
आग बरसाओ. 

फिर देखना,
कैसे होता है तुम्हारे साथ न्याय,
कैसे मिलती है तुम्हें वह जगह,
जिसके तुम हक़दार हो. 

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

३५३. पिता का जाना

मैंने देखा,
पिता को जाते,
अचानक,बिना-वजह.

उनके चेहरे पर थी 
रुकने की ख़्वाहिश,
उनकी आँखों में बेबसी,
उनके होंठों पर थे 
कुछ अस्पष्ट-से शब्द,
उनके हाथों में कोई 
अजनबी-सा इशारा.

क्या था उनके दिल में,
न वे समझा पाए,
न मैं समझ पाया.

मैं बदहवास-सा दौड़ा,
रोकने की कोशिश की,
हाथ पकड़े उनके,
पर उनको नहीं पकड़ पाया.

शनिवार, 30 मार्च 2019

३५२.खुले मैदान में लड़की


खुले मैदान में 
खिलखिलाती है लड़की,
कभी ज़ोर से,
कभी धीरे से 
गुनगुनाती है लड़की,
कभी उछलती है 
कभी नाचती है लड़की।

घर में गुमसुम सी 
रहने वाली लड़की,
ज़िंदा हो गई है 
आज मुर्दा-सी लड़की।

शनिवार, 23 मार्च 2019

३५१. तिनका


मैं छोटा सा तिनका हूँ,
कोई दम नहीं है मुझमें,
हवा मुझे उड़ा सकती है,
पानी बहा सकता है.

कोई चाहे तो आसानी से 
तोड़ सकता है मुझे,
टुकड़े कर सकता है मेरे.

पर मौक़ा मिल जाय,
तो मेरा छोटा-सा टुकड़ा भी 
उन आँखों को फोड़ सकता है,
जिनमें मेरा होना चुभता है.

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

३५०. दिसंबर में बारिश


बारिश,
यहाँ दिसंबर में न आना,
पहले से डेरा जमाए बैठी है ठण्ड,
यह चली जाय, तो आना.

अगर आओ भी,
तो मत बरसना फुटपाथ पर,
अस्पताल के गेट पर,
टपकते छप्परों पर.

अट्टालिकाओं पर बरस जाना,
महलों पर बरस जाना,
उन सारी छतों पर बरस जाना,
जिनके नीचे सोए लोगों तक
तुम तो क्या,
तुम्हारी आवाज़ भी नहीं पहुँचती।

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

३४९. पैसेंजर ट्रेन


मैं पैसेंजर ट्रेन हूँ,
हर गाँव, हर कस्बे से 
मुझे प्यार है.

ठहर जाती  हूँ मैं 
हर छोटे बड़े स्टेशन पर,
हालचाल पूछती  हूँ,
फिर आगे बढ़ती  हूँ.

लोग जल्दी में हैं,
बिना वक़्त गँवाए 
मंज़िल पा लेना चाहते हैं.

उन्हें मैं नहीं,
एक्सप्रेस गाड़ी पसंद है,
जो गाँवों-कस्बों से दुआ-सलाम में 
बिल्कुल वक़्त बर्बाद नहीं करती।

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

३४८. ब्रह्मपुत्र से


ब्रह्मपुत्र,
बहुत दिनों बाद मिला हूँ तुमसे,
कुछ सूख से गए हो तुम,
कुछ उदास से लगते हो,
कौन सा ग़म है तुम्हें,
किस बात से परेशान हो?

अब पहले जैसे गरजते नहीं तुम,
चुपचाप बहे चले जाते हो,
तट पर बसे लोगों से उदासीन,
जैसे नाराज़ हो उनसे।

ब्रह्मपुत्र,
बहुत ग़लतियाँ हुई हैं हमसे,
पर हम तुम्हारी ही संतान हैं,
चाहो तो डुबा दो हमें,
पर पहले की तरह ठठाकर बहो,
हमसे यूँ मुंह न मोड़ो।

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

३४७.यमराज से विनती

यमराज,
इतनी जल्दी आ गए!
अभी तो लिखनी हैं मुझे 
बहुत सारी कविताएं,
इंतज़ार में हैं मेरे पाठक,
उनका दिल मत दुखाओ।

चलो, थोड़ी मोहलत ही दे दो,
घूम आओ ज़रा कॉलोनी में,
मेरे बाद जिसकी बारी है,
उसे पहले उठा लो,
उसे कौन सी कविता लिखनी है?

यह भी संभव नहीं,
तो बैठ जाओ सोफ़े पर,
सुस्ता लो थोड़ा,
कहो तो चाय भिजवा दूँ 
एक कप तुम्हारे लिए.

वह कविता तो पूरी कर लूँ ,
जो कल रात शुरू की थी,
सच कहता हूँ यमराज,
अगर अधूरी रह गई वह कविता,
तो मैं चैन से मर नहीं सकूंगा। 



सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

३४६. सोने का समय


मैंने तय कर लिया है 
कि आज रात निकलूँगा 
एक सुहाने सफ़र पर.

देखूँगा
आसमान में चमकते सितारे,
झील में उतरा चाँद,
महसूस करूंगा
आवाज़ों का चुप होना,
कहीं-कहीं झींगुरों का गीत
या दूर कहीं बजता 
मीठा-सा संगीत।

रात के हाथों में हाथ डाले  
मैं चलता रहूंगा,
जब तक कि सुबह न हो जाय.

फिर शोरगुल शुरू होगा,
अफ़रा-तफ़री मचेगी,
न सितारे होंगे, न चाँद,
अजीब सी जल्दी में होंगे लोग,
बदहवास होंगे सब-के-सब,
सूरज ताक में होगा हमले की,
हवाओं में दहक उठेंगे अंगारे।

मेरे सोने के लिए 
इससे अच्छा समय 
और क्या होगा?

शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

३४५.ठंड में बारिश


बारिश,  
बरसने से पहले
थोड़ा तो सोचा होता
कि अस्पतालों के बाहर
मरीज़ सो रहे हैं। 

थोड़ा तो सोचा होता
कि फुटपाथों पर
कुछ बच्चे, कुछ बूढ़े
कुछ महिलाएं, कुछ पुरुष
सो रहे हैं। 

बारिश
तुमने बहुत ग़लत किया
जो घरों से बाहर थे
तुमने एक बार फिर
उन्हें बेघर कर दिया।

रविवार, 3 फ़रवरी 2019

३४४. रिटायरमेंट के बाद का दिन

बड़ी सुहानी सुबह है आज,
रज़ाई थोड़ी कुनकुनी सी है,
अभी अभी खुली है नींद,
पर आज नहीं बजा अलार्म।

पंछी चहचहा रहे हैं कहीं,
आवाज़ लगा रहा है दूधवाला,
कमरे में बिखरने को बेताब है
मोटे परदे के पार की धूप।

उबल रही है चाय पतीले में,
ख़ुशबू फैल रही है घर भर में,
रबर से बंधा पड़ा है अख़बार,
बाल्टी भर रही है गुसलखाने में।

यहीं कहीं पड़ा होगा ब्रीफ़केस,
बिख़रे होंगे टिफिन के डिब्बे,
कोई डर नहीं है आज मुझे
किसी बायोमिट्रिक मशीन का।



शनिवार, 26 जनवरी 2019

३४३. कोमल पत्ते


वसंत ने दस्तक दी है,
हल्की-सी ठंडी हवा चली है,
कांप उठे हैं नए कोमल पत्ते।

मत रोको उन्हें,
कुछ ग़लत नहीं है 
उनके सिहरने में,
इस उम्र और इस मौसम में 
ऐसा ही होता है.

अगर रोकोगे उन्हें,
तो पीले पड़ जाएंगे, 
तुम जैसे हो जाएंगे। 

शनिवार, 19 जनवरी 2019

३४२. रेलगाड़ी


मुझे रेलगाड़ी अच्छी लगती है,
दौड़ती चली जाती है
दो पटरियों पर लगातार, 
जैसे ध्यान-मग्न हो.

दिखाती चलती है 
धरती के अलग-अलग रंग,
मिलाती है अजनबियों से,
रुक जाती है प्लेटफ़ॉर्म पर 
सब के लिए बाहें फैलाए.

वैसे तो हवाई जहाज 
बड़ी जल्दी पहुंचा देता है 
अपनी मंज़िल पर,
मगर उसमें यात्रा का 
वह आनंद कहाँ,
जो रेलगाड़ी में है.

मुझे हवाई जहाज 
इसलिए भी पसंद नहीं 
कि वह हवा में उड़ता है 
और मुझे अच्छा लगता है 
ज़मीन से जुड़े रहना.

शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

३४१. कविता का अर्थ


ज़रा-सी देर में मैंने 
लिख डाली एक कविता,
फिर सालों-साल निकलते रहे 
उसके कई-कई अर्थ.

जैसे एक नहीं,
कई कविताएं लिख दी हों मैंने,
फिर सौंप दिया हो उन्हें 
अनगिनत पाठकों को.

जो कविता लिखी थी मैंने,
छोड़ गई मुझको,
मुझसे बिछड़कर जैसे 
हवा में बिखर गई. 

अब मैं लिखूंगा 
एक और कविता,
संभालकर रखूँगा उसे, 
वह सिर्फ़ मेरी होगी 
और उसका अर्थ भी 
सिर्फ़ मेरा होगा. 


शनिवार, 5 जनवरी 2019

३४०. बूढ़ा पेड़

एक चिड़िया 
उड़ते हुए आई,
चहचहाने लगी 
पेड़ की डाल पर।

बूढ़ा पेड़ हर्षाया,
बहुत दिनों बाद 
दूर हुआ उसका
एकाकीपन।

बस थोड़ी देर और,
फिर उड़ जाएगी चिड़िया,
उसका घोंसला कहीं और है,
पर पेड़ ख़ुश है,
थोड़े समय के लिए ही सही,
चिड़िया उसके पास आई तो.

बूढ़े पेड़ पर पत्ते न सही, 
उसकी उम्मीदें हरी हैं,
शायद फिर एकाध बार 
आ जाय कोई चिड़िया,
बैठ जाय उसकी डाली पर,
शायद एकाध बार फिर 
सुनाई पड़ जाय उसे 
चिड़ियों की चहचहाट
मरने से पहले।