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शुक्रवार, 23 मार्च 2018

३०४. विराट

पेड़ की डालियों के स्टम्प बनाकर
ईंट-पत्थरों की सीमा-रेखा के बीच 
वह छोटा-सा लड़का सुबह से शाम तक 
रबर की गेंद से क्रिकेट खेलता है.

सब उसे नकारा समझते हैं,
पर उसकी माँ को यकीन है 
कि उसकी मेहनत रंग लाएगी,
उसका निश्चय उसे तराशेगा.

लड़के की माँ कभी अपना टूटा घर 
कभी अपने फटे कपड़े देखती है,
उसे यकीन है कि एक दिन 
उसका बेटा ज़रूर विराट बनेगा.

शुक्रवार, 16 मार्च 2018

३०३.वसंत की दस्तक




वसंत ने दस्तक दी है,
हल्की-सी ठण्ड लिए 
धीरे-से हवा चली है.

कांप उठे हैं नए कोमल पत्ते,
मत रोको उन्हें,
कुछ ग़लत नहीं है उनके सिहरने में,
इस उम्र में और इस मौसम में 
ऐसा ही होता है.

अगर रोकोगे उन्हें,
तो पीले पड़ जाएंगे,
बिल्कुल तुम जैसे हो जाएंगे.

शनिवार, 10 मार्च 2018

३०२. पिता

पिता, तुम्हारे जाने के बाद मैंने जाना 
कि तुम मेरे लिए क्या थे.

जब तुम ज़िन्दा थे,
पता ही नहीं चला,
चला होता, तो कह देता,
बहुत ख़ुश हो जाते तुम,
मैं भी हो जाता 
अपराध-बोध से मुक्त.

पिता, ऐसा क्यों होता है 
कि पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाती है 
और हम समझ ही नहीं पाते 
कि कौन हमारे लिए क्या है.

शनिवार, 3 मार्च 2018

३०१. आमंत्रण


आओ, बना लो घोंसले कहीं भी,
किसी भी डाल पर,
किसी भी कोने में,
जहाँ भी तुम्हें जगह मिले.

मत सोचो कि कैसे बनेंगे 
इतने घोंसले मुझ पर,
ज़रा कमज़ोर दिखता हूँ,
पर गिरूँगा नहीं,
मरूंगा नहीं,
कितने ही घोंसले क्यों न बन जायँ मुझ पर.

क्या फ़ायदा मेरी डालियों का,
मेरे पत्तों का,
अगर तुम्हारे बसेरे न हों उनमें?
इसलिए कहता हूँ,
स्वागत है तुम्हारा,
अपने कलरव से भर दो मेरी ज़िन्दगी,
घोंसले बना लो मुझमें.