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शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

३३०. सुन्दर लड़की


सुनो, सुन्दर लड़की,
अक़सर तुम मेरे सपने में चली आती हो,
मेरे पास बैठकर बतियाती रहती हो,
कभी हंसती हो,
कभी नाराज़ हो जाती हो,
कभी-कभी अनजाने में 
मेरा हाथ भी थाम लेती हो.

सुनो, सुन्दर लड़की,
वैसे तो तुम दूर-दूर रहती हो,
मुझसे बात करना तो दूर,
मेरी ओर देखती भी नहीं।

किस मिट्टी की बनी हो तुम?
मैंने कभी भी हक़ीक़त में तुम्हें 
मुस्कराते नहीं देखा,
न तुम्हारा गुस्सा देखा है,
न तुम्हारा प्यार,
बस एक अजनबीपन देखा है.

हक़ीक़त में बहुत उबाऊ हो तुम,
पर सपने में बहुत जीवंत,
सुन्दर लड़की,
तुम्हें नहीं मालूम,
तुम्हारी वज़ह से आजकल
मैं सोता बहुत हूँ.

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

३२९. रावण की सेल्फ़ी


हर बार जाता हूँ 
रावण का फोटो खींचने 
मैं दशहरे के मेले में,
पर रावण है 
कि बच जाता है 
अच्छे-से-अच्छे कैमरे से. 

सालों बाद समझ पाया हूँ 
कि रावण का फोटो लेना हो,
तो कैमरा अपनी ओर करना पड़ता है,
सेल्फ़ी लेना पड़ता है.

शनिवार, 13 अक्तूबर 2018

३२८.जड़ें

मैंने जड़ों से पूछा,
क्यों घुसी जा रही हो ज़मीन में,
कौन सा खज़ाना खोज रही हो,
किससे छिपती फिर रही हो ?

जड़ों ने कहा,
हमारे सहारे टिका है पेड़,
जुटाना है उसके लिए हमें 
पोषक आहार,
हरे रखने हैं उसके पत्ते,
बनाना है उसे विशाल।

क्या फ़र्क़ पड़ता है,
जो गुमनाम हैं हम?
हमारे लिए इतना बहुत है 
कि हमने थाम रखा है किसी को,
ज़मीन के अंदर ही सही,
किसी की ज़िन्दगी हैं हम.