इन दिनों मैं बहुत ढूंढ़ता हूँ मां को,
हर किसी में खोजता हूँ उसे,
कभी ढूंढ़ता हूँ बहन में,
कभी बेटी में, कभी पत्नी में।
दूसरों की मांओं में
मैं अक्सर खोजता हूं मां,
उनमें भी खोजता हूं
जो अभी नहीं बनीं मां,
उनमें भी, जिन्हें पता नहीं
कि क्या होती है मां।
महिलाओं में ही नहीं,
मैं पुरुषों में भी खोजता हूं मां,
इंसानों में ही नहीं,
जानवरों में, परिंदों में,
पेड़ पौधों में,
फूल पत्तियों में,
यहां तक कि निर्जीव चीज़ों में भी
मैं खोजता हूं मां।
सब में मिल जाती है मुझे
थोड़ी थोड़ी वह,
पर किसी में नहीं मिलती मुझे
पूरी की पूरी मां।