मैं आम तौर से हास्य कविताएं नहीं लिखता, पर इस दिवाली में ऐसी कुछ छोटी-छोटी कविताएं लिखी गईं। मैं इस अनुरोध के साथ साझा कर रहा हूँ कि इन्हें मेरा व्यक्तिगत अनुभव न माना जाय। पाठक ऐसी कोई भी टिप्पणी करने से बचें, जिससे मेरी दिवाली ख़राब होने की संभावना हो।
1.
तुमने रंगोली बनाई,
तो मुझे कहना ही पड़ा
कि अच्छी है,
पिछली बार सच बोला था,
तो सुननी पड़ी थी
पटाखों की आवाज़।
2.
यह दिवाली का बम नहीं
कि बस एक बार फटे,
चिंगारी लग गई,
तो कौन जाने,
कितनी बार फटे।
3.
तुम चकरी चलाती हो,
तो मैं सोचता हूँ,
कितना हुनर है तुममें,
तुम्हें बनाना भी आता है,
चलाना भी।
4.
हमेशा मत फटा करो
लाल पटाखों की तरह,
कभी-कभी ही सही,
दूर चली जाया करो
रॉकेट की तरह।
5.
यह ऐसा पटाखा है,
जो कभी फुस्स नहीं होता,
एक बार आ जाए,
तो फटकर ही मानता है।
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