शनिवार, 25 नवंबर 2023

७४४. पुराना घर

 



नया घर पुकारता है, 

कहता है, चले आओ,

यहाँ रहो, 

पर पुराना घर 

कलाई नहीं छोड़ता, 

कहता है,

मैं मानता हूँ 

कि मेरा प्लास्टर झड़ रहा है, 

सीलन से भरे हैं मेरे कमरे,

पर तुम्हारी यादें हैं मुझमें. 


नया घर कहता है,

‘सोचो मत,आ जाओ’,

मैं तुम्हें रहने का सुख दूँगा,

यादों का क्या है, 

मैं भी दूँगा बहुत सारी।


अंततः नया घर जीत जाता है, 

पर नए घर में 

पीछा करती हैं मेरा 

पुराने घर की सिसकियाँ,

इस तरह हर नए घर में 

घुसा रहता है पुराना घर. 


शनिवार, 18 नवंबर 2023

७४३. शोर

 


बहुत शोर है मेरे अंदर, पर कुछ सुनता ही नहीं,

मुझे तो शक़ है, कहीं मैं बहरा तो नहीं. 


बहुत सहा है उसने, पर कहता कुछ नहीं, 

उसके अंदर दबा शोर कहीं गहरा तो नहीं. 


बह रहा है पानी, तो शोर क्यों नहीं है,

नदी जिसे समझा था, सहरा तो नहीं. 


जो शोर कर रहा था, अब चुपचाप क्यों है,

उससे पूछो, उसका ज़मीर कहीं ठहरा तो नहीं. 


अगर बच्चा है वह, तो ख़ामोश क्यों है,

उसके शोर पर किसी का पहरा तो नहीं. 


सोमवार, 13 नवंबर 2023

७४२.बराबर अँधेरा

 




मेरे पड़ोसी की ड्योढ़ी पर

दीया रख गया कोई,

फैल गया उसकी लौ से 

उजाला मेरे दरवाज़े तक. 


अच्छा नहीं लगा मुझे

थोड़ा ज़्यादा उजाला 

पड़ोसी की ड्योढ़ी पर,

जिसने भी दीया रखा,

क्यों नहीं रखा उसने 

मेरी ड्योढ़ी पर?


मैंने बुझा दिया दीया,

अब दोनों जगह अँधेरा था,

मैं ख़ुश था 

कि अँधेरा न कहीं ज़्यादा था,

न कहीं कम,

वह दोनों जगह बराबर था.


गुरुवार, 2 नवंबर 2023

७४१. कुर्सी-टेबल

 


उस घर में 

एक टेबल थी,

एक कुर्सी,

जब से मिले,

साथ-साथ थे

एक ही कमरे में. 


दोनों धीरे-धीरे 

पुराने हो गए हैं,

कुर्सी का एक हाथ, 

टेबल का एक पाँव 

अब टूट गया है. 


इन दिनों कुर्सी बरामदे में, 

टेबल आँगन में है,

उनकी जगह अब 

नई कुर्सी,नया टेबल है. 


दोनों अलग-अलग हैं,

दोनों बेचैन हैं,

दोनों चाहते हैं 

कि साथ-साथ रहें,

जब तक कि वे पूरी तरह

टूट न जायँ. 

 


शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

७४०.आँगन


जब से आँगन का 

बंटवारा हुआ,

हमने नहीं बनाए 

पापड़-अचार,

नहीं बनाई 

बड़ी-मंगोड़ी. 


हमने नहीं किया  

संगीत का कार्यक्रम,

अखंड रामायण-पाठ,

नहीं बजाया ढोल,

नहीं बजाई झींझ,

नहीं रखी 

सत्यनारायण-कथा. 


हमने नहीं समेटी 

मिलके कोई चादर,

नहीं निचोड़ी साड़ी

नहीं बुनी निवार . 


अब कोई नहीं चलाता 

बेबी साइकिल यहाँ,

बच्चे नहीं बनाते 

मिलकर रेलगाड़ी. 


कोई नहीं दौड़ता 

किसी दूसरे के पीछे,

किसी का नहीं छिलता  

अब घुटना यहाँ. 


अब नहीं होती यहाँ 

पड़ोसनों से गप्पें,

अब नहीं होते यहाँ 

बच्चों के झगड़े. 


आँगन के बीचों-बीच 

जो तुलसी का चौरा था,

उसका पौधा मर गया है, 

अब नहीं लगती फेरी वहाँ . 


आँगन बँट गया है,

खिंच गई है वहां 

अब एक ऊंची दीवार,

कोई खिड़की नहीं है उसमें. 


आजकल सूरज 

दीवार के इस ओर,

तो चाँद उस ओर चमकता है,

हवा ठिठक जाती है 

दीवार के पास आकर. 


लोग कहते हैं 

कि अब भी बड़े हैं 

आँगन के दोनों हिस्से,

पर मुझे छोटे लगते हैं,

छोटे से ज़्यादा अधूरे।


कितना ही बड़ा क्यों न हो 

किसी घर का आँगन,

एक पूरे आँगन से 

नहीं निकल सकते 

दो साबुत आँगन. 


जो आँगन बहुत बोलता था,

आजकल चुप है,

आजकल आँगनवाले घर 

मुझे बिल्कुल अच्छे नहीं लगते. 


शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2023

७३९. प्रवासी पक्षी



इस बार गाँव में 

प्रवासी पक्षी बहुत आए,

रंग-बिरंगे, 

छोटे-बड़े,

अलग-अलग आवाज़ों में 

चहचहानेवाले. 


इस बार गाँव में 

बहुत रौनक़ थी,

मेहमानों के आने से

बहुत ख़ुश थे लोग. 


कोई उदास था,

तो वह बुढ़िया, 

जिसका प्रवासी पक्षी 

इस साल भी 

गाँव नहीं आया था. 

 

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

७३८.अदालत के बाहर

 



मैंने बीस साल पहले

एक युवक को यहाँ देखा था, 

फोटोकॉपी करवा रहा था वह

या शायद कुछ टाइपिंग, 

उसने बड़े अजीब तरीक़े से

एक फ़ाइल बगल में दबा रखी थी। 


उसके सिर पर घने काले बाल, 

बदन पर अच्छे सिले कपड़े, 

पाँवों में चमचमाते जूते थे, 

उसके चेहरे पर मुस्कराहट

और आँखों में उम्मीद थी। 


बीस साल बाद 

आज मैं फिर उधर से गुज़रा, 

मैंने देखा, एक बूढ़ा आदमी

फोटोकॉपी करवा रहा था 

या शायद कुछ टाइपिंग, 

उसके कपड़े फटे हुए थे, 

वह घिसी हुई चप्पलें पहने था। 


उसके चेहरे पर झुर्रियाँ, 

आँखों में मायूसी थी, 

सिर पर बाल लगभग नहीं थे, 

कमर भी थोड़ी झुकी हुई थी। 



उसने बड़े अजीब तरीक़े से

एक फ़ाइल बगल में दबा रखी थी, 

इसी से मैंने पहचाना

कि यह वही आदमी था, 

जिससे मैं बीस साल पहले मिला था।


मंगलवार, 10 अक्तूबर 2023

७३७.निःशब्द कविता

 


मैंने एक कविता लिखी है,

आम कविताओं जैसी कविता,

उसमें गहरे भाव तो हैं,

पर शब्द नहीं हैं. 


यह मैंने काग़ज़ पर नहीं,

किसी क़लम से नहीं,

कुछ सोचकर नहीं,

महसूस करके लिखी है. 


तुम्हारे अलावा कोई और  

पढ़ नहीं पाएगा इसे,

तुम भी नहीं पढ़ पाई,

तो मर जाएगी यह कविता. 


आओ, मेरी आँखों में देखो, 

पढ़ने की कोशिश करो,

अगर तुमने उतना भी पढ़ लिया,

जितना मैंने तुममें पढ़ा है,

तो तुम आसानी से समझ लोगी 

यह बिना शब्दोंवाली कविता.




शनिवार, 30 सितंबर 2023

७३६.महात्मा

 


इतनी हिंसा,

इतनी नफ़रत,

इतना उन्माद!

बापू,

बहुत खलता है इन दिनों 

तुम्हारा नहीं होना. 

***

बापू,

कैसा लगता है तुम्हें, 

जब तुम देखते हो 

कि हमने तुम्हें याद भी रखा है

और भूल भी गए हैं. 

***

बापू,

तुम्हारे तीनों बन्दर 

सही सलामत हैं,

न बुरा देखते हैं,

न बुरा बोलते हैं,

न बुरा सुनते हैं, 

पर समझ में नहीं आता 

कि तुमसे अलग होकर

वे इतने ख़ुश क्यों हैं? 


शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

७३५. वक़्त मिले तो पढ़ लेना



तुम्हारे मोहल्ले की गलियों में,

इस शहर की सड़कों पर 

मेरे क़दमों ने जो लिखा है, 

वक़्त मिले तो पढ़ लेना. 


खम्भे का सहारा लेकर  

तुम्हारी खिड़की को ताकते हुए 

मेरी आँखों ने जो लिखा है,

वक़्त मिले तो पढ़ लेना. 


तुम्हारे बंद दरवाज़े पर

दस्तक देते हुए

मेरी उँगलियों ने जो लिखा है,

वक़्त मिले तो पढ़ लेना. 


वह अकेला ख़त, जो मैंने 

सालों पहले तुम्हें लिखा था,

उसमें जो अनलिखा है,

वक़्त मिले तो पढ़ लेना.