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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

२०४. नींद

मेरी आँखें खुली हैं,
पर मैं नींद में हूँ,
चल रहा हूँ,
मंज़िल से भटक रहा हूँ,
पर नींद है कि टूटती नहीं,
कोई झकझोरे तो भी नहीं.

आँखें खुली हों,
फिर भी जो नींद में हो,
उसे पता होना ज़रूरी है 
कि वह नींद में है,
यह जागने की पहली शर्त है.

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

२०३. इंसान और कुत्ता

न जाने क्यों
आजकल इंसान
कुत्तों जैसे बनना चाहते हैं.

वे आदमियों की तरह नहीं,
कुत्तों की तरह लड़ते हैं,
उन्हीं की तरह जीभ लपलपाते हैं,
सुविधाओं के बदले
कोई पट्टे से बांधे
तो बेहिचक बंध जाते हैं.

इंसान ने कुत्तों से
बहुत कुछ सीखा है,
सिवाय वफ़ादारी के,
मौक़ा मिलते ही
एक इंसान दूसरे को
कुत्ते की तरह काट खाता है.

इंसान ने बहुत सारी बुराइयाँ
कुत्तों से सीख ली हैं,
पर अपनी बुराइयाँ नहीं छोड़ीं,
दरअसल अब इंसान
न इंसान रहा, न कुत्ता.