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बुधवार, 29 दिसंबर 2021

६३१. अजीब दुनिया

 


मैं जब नफ़रत की बात करता हूँ,

तो सारे कान खड़े हो जाते हैं,

पर जब प्यार की बात करता हूँ,

तो किसी को कुछ नहीं सुनता. 


किसी का ख़ून बहाना हो,

तो भीड़ जमा हो जाती है,

किसी की जान बचानी हो,

तो मैं अकेला रह जाता हूँ. 


किसी को दूर करना हो,

तो एक पल भी नहीं लगता,

किसी को गले लगाना हो,

तो सालों बीत जाते हैं. 


यह दुनिया भी अजीब दुनिया है,

दुःख के पीछे दौड़ती है 

और जो सामने खड़ा है,

उस सुख के लिए तरसती है. 


शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

६३०. जकड़न



पत्तों,

ज़रा-सी बारिश क्या हुई,

तुम तो सज-धजकर 

तैयार हो गए 

कि सुहाने मौसम में 

कहीं घूमने जाएंगे,

पर संभव नहीं है 

तुम्हारा कहीं घूमने जाना।


ऐसा करो कि जहाँ हो,

वहीं थोड़ा-सा नाच लो, 

जिस पेड़ ने तुम्हें 

जकड़ रखा है,

न वह ख़ुद कहीं जाएगा,

न तुम्हें जाने देगा. 


रविवार, 19 दिसंबर 2021

६२९. निशाना

 



दस सिर थे रावण के,

पर था तो वह एक ही,

एक ही तीर चलाया था राम ने,

सोख लिया था उसकी नाभि का अमृत 

और अंत हो गया रावण का. 


आज के राम का काम ज़रा मुश्किल है, 

अब दस सिर वाला एक रावण नहीं,

अलग-अलग सिर वाले हज़ारों रावण हैं,

अब रावणों को मारना है,

तो तीर कई होने चाहिए 

और निशाना होना चाहिए अचूक. 


रविवार, 12 दिसंबर 2021

६२८.ताला




मैं एक मज़बूत ताला हूँ,

मुझे आराम से खोलना,

अगर ज़ोर ज़बरदस्ती की,

तो चाभी टूट भी सकती है.

फिर तुम्हें मुश्किल होगी,

फिर मैं खुलूँगा नहीं,

आसानी से टूटूंगा भी नहीं।


गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

६२७. दंड

 



धीरे-धीरे सालों तक

सुलगती रही लकड़ी

अब कुछ भी बाक़ी नहीं

जलने-सुलगने को,

पर जो धुआँ फैला है

ख़त्म ही नहीं होता.

धुआँ भी ऐसा

कि आँखों में आँसू आ जाएं,

पर यह तो सहना ही पड़ेगा,

सालों तक सुलगाने का दंड  

सबको भुगतना पड़ेगा.


मंगलवार, 7 दिसंबर 2021

६२६. प्रकृति और आदमी



मैंने माँगा नहीं,

पर पेड़ों ने छाँव दी,

पौधों ने फूल दिए,

फूलों ने ख़ुश्बू दी,

झरनों ने पानी दिया,

हवा ने ताज़गी दी,

सूरज ने रौशनी दी, 

चाँद ने शीतलता दी. 


सबने बिना मांगे 

कुछ-न-कुछ दिया, 

मैंने आदमी से माँगा,

उसने कहा,

‘मेरे पास इतना कहाँ है 

कि तुम्हें कुछ दे सकूं.’


शनिवार, 4 दिसंबर 2021

६२५. मोहलत

  


अपने आख़िरी समय में 

कुछ कहना चाहते थे पिता. 


आँखें पथरा गई थीं उनकी,

आवाज़ बंद थी,

सिर्फ़ हाथ थे,

जो इशारा कर रहे थे. 


बहुत कोशिश की उन्होंने,

पर समझा नहीं पाए,

ज़िन्दगी भर उन्होंने 

आँखों से ही जो समझाया था. 


कभी-कभार ही करते थे 

पिता जीभ का इस्तेमाल,

पर आज आँखों और जीभ 

दोनों ने दग़ा दे दिया था,

सिर्फ़ हाथ थे,

जो अब भी उनके साथ थे,

पर हम नहीं समझते थे 

उनके हाथों की भाषा. 


मौत को चाहिए कि 

अपना नियम बदले,

थोड़ी मोहलत दे दे,

इतनी निष्ठुर न बने 

कि जाने से पहले कोई अपनी

आख़िरी बात भी न कह सके.


बुधवार, 1 दिसंबर 2021

६२४.नदी



बहती चली जाती है नदी,

आवाज़ देकर बुलाती है,

प्यासों की प्यास बुझाती है, 

इंसान,जानवर,परिंदा -

जो चाहे आए,

जितना चाहे पानी पी जाए,

बदले में कुछ नहीं मांगती,

शुक्रिया भी नहीं,

आगे निकल जाती है नदी. 

**

चट्टानों से टकराती है,

जंगलों से गुज़रती है,

अपना रास्ता ख़ुद बनाती है,

अनवरत संघर्ष करती है, 

कभी थकती नहीं,

कभी रुकती नहीं,

गुनगुनाना नहीं छोड़ती 

यह मस्तमौला नदी.

 

शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

६२३. ब्रह्मपुत्र को सुनो

 



सुनो,

किसी शाम एक नाव लेते हैं, 

ब्रह्मपुत्र में निकलते हैं,

लहरें जिधर ले जायँ,

उधर चलते हैं.


इतनी दूर निकल लेते हैं 

कि गौहाटी शहर की बत्तियां 

ओझल हो जायँ नज़रों से. 


जब कुछ भी न दिखे,

पानी भी नहीं, 

तो बंद कर दें चप्पू चलाना,

कानों में पड़ने दें 

बहते पानी की आवाज़. 


बहुत दिनों से हमने सुना नहीं है 

कि ब्रह्मपुत्र कहना क्या चाहता है. 


गुरुवार, 25 नवंबर 2021

६२२.साथी



ऐसा साथी भी क्या साथी,

जो दो कदम चले,

आलिंगन में भरे,

फिर निकल जाय 

किसी अलग रास्ते पर,

उम्मीदों का ज्वार जगा कर  

धराशाई कर दे उन्हें.  


साथी बनो तो ऐसे बनो 

कि न छूटो, न टूटो,

देर तक चलो,

दूर तक चलो. 


रविवार, 21 नवंबर 2021

६२१. ख़ामोश घर

 


बहुत शोर था कभी उस घर में, 

आवाज़ें आती रहती थीं वहां से

कभी हंसने,कभी रोने की,

कभी बहस करने,कभी झगड़ने की,

कोई गुनगुनाता था वहां कभी-कभी, 

चूड़ियां,तो कभी पायल खनकती थी वहाँ,

आवाज़ें आती थीं बर्तनों के खड़कने की,  

सुबह-शाम नल से पानी गिरने की.


अब वह घर ख़ामोश है,

आवाज़ें विदा हो गई हैं वहां से, 

अब वह घर मुझे अच्छा नहीं लगता, 

ऐसे चुपचाप घर किसी को अच्छे नहीं लगते,

वे किसी के भी क्यों न हों. 


सोमवार, 15 नवंबर 2021

६२०. चित्र

 


अपने आलीशान घर की दीवार पर 

उसने एक चित्र लगाया,

जिसमें लकड़ी का एक सुन्दर घर था,

आसपास हरियाली थी,

रंग-बिरंगे फूल खिले थे,

सामने नदी बह रही थी. 


अब वह सुबह से शाम तक 

उस चित्र को देखता रहता है,

अब अपना घर उसे अच्छा नहीं लगता. 


शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

६१९. ग्रास

 




पिता की मृत्यु के बाद 

कोई कौआ कभी 

हमारी मुंडेर पर नहीं आया,

पितृपक्ष में भी नहीं. 


माँ कहती है,

पिता ख़ुश नहीं थे 

अपने अंतिम दिनों में,

कई बार भूखे पेट सो जाते थे. 


पिता को अगर भूख लगी,

तो कहीं और चले जाएंगे,

माँ जानती है 

कि वे कभी नहीं आएँगे 

इस घर में अपना ग्रास लेने.    


मंगलवार, 9 नवंबर 2021

६१८. काँव -काँव


 

बहुत दिनों तक कोई मेहमान

मेरे घर नहीं आता,

तो मैं इंतज़ार करता हूँ 

किसी कौए की काँव-काँव का. 


कहते हैं,जब कोई कौआ  

घर की मुंडेर पर बैठकर 

काँव-काँव करता है,

तो कोई आने वाला होता है. 


लम्बे इंतज़ार के बाद 

जब भी कोई कौआ 

मेरे घर की मुंडेर पर आकर 

काँव-काँव करने लगता है,

तो मैं बहुत ख़ुश हो जाता हूँ,

उसकी काँव-काँव के आगे 

कोयल की कूक भी मुझे 

फ़ीकी लगने लगती है. 


शुक्रवार, 5 नवंबर 2021

६१७.पीपल का पौधा

 


उस पुरानी दीवार में 

एक पीपल का पौधा उगा,

मैंने उसे जतन से निकाला,

गड्ढा खोदकर ज़मीन में लगाया,

उसे खाद-पानी दिया,

उसकी हिफ़ाज़त की,

पर वह मुरझा गया. 


पीपल का वह पौधा 

शायद इसी लिए पैदा हुआ था 

कि उस पुरानी दीवार को गिरा दे,

जीवन में कुछ और करना 

उसे मंज़ूर ही नहीं था. 


मंगलवार, 2 नवंबर 2021

६१६. कारोबार




क्यों जला रहे हो दिए

साल भर अँधेरा बाँटने वाले?

कोई हक़ नहीं तुम्हें 

कि रोशनी बिखेरने का नाटक करो. 


किसी भ्रम में मत रहना,

सब लोग जानते हैं तुम्हारी असलियत,

बहकावे में नहीं आने वाले,

उन्हें मालूम है 

कि रोशनी बाँटने का तुम्हारा 

कोई इरादा है ही नहीं. 


उन्हें मालूम है 

कि तुम्हारा दिए जलाना,

रोशनी बाँटना, 

बस एक चाल है 

ताकि अँधेरे का कारोबार करने में 

तुम्हें थोड़ी आसानी हो जाय. 


शनिवार, 30 अक्तूबर 2021

६१५. इंसान

 


इंसान हो,तो साबित करो,

कहने से क्या होता है?


दूसरों के दुःख से 

दुखी होकर दिखाओ,

दूसरों के आँसुओं से 

पिघलकर दिखाओ. 


दूसरों की कामयाबी पर 

ख़ुश होकर दिखाओ,

जो हार चुके हैं सर्वस्व,

उन्हें गले लगाकर दिखाओ. 


भूखे की रोटी,

प्यासे का पानी,

नंगे का कपड़ा,

बेघर का घर बन के दिखाओ. 


किसी बेजान दिल की 

धड़कन बन के दिखाओ,

गहरे अँधेरे में 

दिया बन के दिखाओ,

घनघोर जंगल में 

पगडंडी बन के दिखाओ. 


इंसान हो तो साबित करो,

कहते तो सभी हैं,

कहने से क्या होता है?


रविवार, 24 अक्तूबर 2021

६१४.भगवान बचाए

 

तय किया है उन्होंने कि जनसेवा करेंगे,

संकल्प से उनके भगवान बचाए. 


वे करते कम हैं, गिनाते ज़्यादा हैं,

मेहरबानियों से उनकी भगवान बचाए. 


वे भी आमंत्रित हैं आज के जलसे में,

कविताओं से उनकी भगवान बचाए. 


सुना है,वे आएँगे पीड़ितों से मिलने,

दौरों से उनके भगवान बचाए. 


क़ातिलाना है उनकी प्यार-भरी नज़रें,

प्यार से उनके भगवान बचाए. 


गुरुवार, 21 अक्तूबर 2021

६१३. गुल्लक


एक गुल्लक है,

जिसमें सालों से 

मैं पैसे डाल रहा हूँ,

मैंने इसे कभी तोड़ा नहीं,

शायद कभी तोड़ूंगा भी नहीं,

पर जब मैं गुल्लक को हिलाता हूँ 

और सिक्कों की खनक सुनाई देती है,

तो न जाने क्यों, मुझे बहुत अच्छा लगता है. 

***

कब तक ख़ुश होते रहोगे 

सिक्कों की खनखनाहट सुनकर,

कभी तो गुल्लक उठाओ,

दे मारो ज़मीन पर,

बिखर जाने दो सिक्के,

लूट लेने दो, जिसे भी लूटना है,

जितना भी लूटना है.  

**

गुल्लक में खनकते सिक्के कहते हैं,

बहुत साल हुए हमें बंद हुए,

हमें आज़ाद करो,

किसी के तो काम आने दो.