धीरे-धीरे सालों तक
सुलगती रही लकड़ी
अब कुछ भी बाक़ी नहीं
जलने-सुलगने को,
पर जो धुआँ फैला है
ख़त्म ही नहीं होता.
धुआँ भी ऐसा
कि आँखों में आँसू आ जाएं,
पर यह तो सहना ही पड़ेगा,
सालों तक सुलगाने का दंड
सबको भुगतना पड़ेगा.
सालों तक सुलगाने का दंड सबको भुगतना पड़ेगा.... वाह!क्या खूब कहा सर।
भावपूर्ण रचन। बधाई।
चिन्तन परक भावाभिव्यक्ति ।
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
सालों तक सुलगाने का दंड
जवाब देंहटाएंसबको भुगतना पड़ेगा.... वाह!क्या खूब कहा सर।
भावपूर्ण रचन। बधाई।
जवाब देंहटाएंचिन्तन परक भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
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