मैंने माँगा नहीं,
पर पेड़ों ने छाँव दी,
पौधों ने फूल दिए,
फूलों ने ख़ुश्बू दी,
झरनों ने पानी दिया,
हवा ने ताज़गी दी,
सूरज ने रौशनी दी,
चाँद ने शीतलता दी.
सबने बिना मांगे
कुछ-न-कुछ दिया,
मैंने आदमी से माँगा,
उसने कहा,
‘मेरे पास इतना कहाँ है
कि तुम्हें कुछ दे सकूं.’
वाह!बहुत ही सुंदर प्रकृति निवार्थ भाव से लुटाती है।
जवाब देंहटाएंसादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 09 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
प्राकृति ऐसी ही है ... सब कुछ देती है बस ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार प्रस्तुति👌👌
जवाब देंहटाएंप्रकृति का दोहनकर पर को क्या देगा
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
वाह
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