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मंगलवार, 31 मार्च 2020

४१६. शोर


Sunset, Birds, Flying, Sky, Colorful

एक पंछी उड़ते हुए आया,
मेरी खिड़की पर बैठा,
पूछा,'पिंजरे में कैसा लगता है?'
मैंने कोई जवाब नहीं दिया,
उसने हँसते हुए पूछा,
'दाना-पानी है न?'
और फुर्र से उड़ गया.

***

उड़े जा रहे हैं 
कुछ पंछी आकाश में
आपस में बतियाते 
कि बहुत शांति है आज,
सब बंद हैं घरों में,
ये जब बाहर होते हैं,
तो कितना शोर मचाते हैं!

***

एक पंछी नाच रहा है सड़क पर,
कह रहा है लोगों से,
अब पिंजरे में रहने के 
तुम्हारे दिन आए,
हम आज़ाद हैं,
तुम्हारी बनाई सड़कों पर 
तुम्हारी अनुमति के बिना 
थोड़ा हम भी फुदकेंगे.

शनिवार, 28 मार्च 2020

४१५. पंछी बनकर देखें

Hello Baby, Sank, Fly, Animal, Nature

थोड़े दिन के लिए 
चलो,पंछी बनकर देखें,
मुँह अँधेरे उठ जायँ,
चहकें साथ मिलकर,
डाली-डाली, पेड़-पेड़ फुदकें,
जहाँ मर्ज़ी बैठें,
उड़ान भरें मुक्त आकाश में,
सूरज को क़रीब से देखें.

अपने ही घर में झांकें
बंद खिडकियों के पार से,
घोंसला बना लें 
कहीं किसी पेड़ पर,
मुंडेर पर रखे कटोरे से 
चोंच-भर पानी पी लें,
आँगन में फेंका गया दाना 
थोड़ा-सा चुग लें.

बहुत देख लिया इंसान बनकर,
लॉकडाउन खुलने तक 
चलो पंछी बनकर देखें.

गुरुवार, 26 मार्च 2020

४१४. खटिया

Bed, Camp, Camp Bed, Cot, Cot, Cot, Cot
वह जो खटिया तुमने 
आँगन के कोने में रखी है,
धूप में तपती है,
बारिश में भीगती है.

निवारें फट रही हैं उसकी,
पाए टूट रहे हैं,
हवा से चरमराती है,
दर्द से कराहती है वह खटिया.

थोड़ी सुध ले लो उसकी,
थोड़ी मरम्मत करा दो उसकी,
चाहो तो आँगन में ही रखो,
पर धूप-बारिश से बचा लो उसको.

कैसे समझओगो आज ख़ुद को,
कैसे अनदेखी करोगे उसकी,
आज तो तुम यह भी नहीं कह सकते 
कि तुम्हारे पास समय नहीं है.

मंगलवार, 24 मार्च 2020

४१३. लॉकडाउन में किताबें

Books, Bookshelf, Library, Literature

सालों बाद ख़ुश हैं 
अलमारी में रखी किताबें,
शायद कोई निकालेगा उनको,
शायद धूल झड़ेगी उनकी.

बुकमार्क काम आएगा शायद,
पलटे जाएंगे किताबों के पन्ने,
पढ़े जाएंगे उनमें लिखे शब्द,
सराहा जाएगा शायद उनको.

झूलेंगी आरामकुर्सी पर किताबें,
कमरे से बालकनी में आएंगी,
खुली हवा में सांस लेंगी,
महसूस करेंगी चाय की महक.

अलमारी में रखी किताबें इंतज़ार में हैं,
रह-रह कर देख रही हैं उम्मीद से,
शायद अब फिरेंगे दिन उनके,
शायद टूटेगा उनका लॉकडाउन.

शनिवार, 21 मार्च 2020

४१२. बेटियां

Adult, Mother, Daughter, Beach, Kids

कच्ची कैरी-सी,
इमली-सी,
गोलगप्पे के चटपटे पानी-सी,
दोने में रखी झालमुड़ी-सी,
झाड़ियों में लगे 
खट्टे-मीठे बेर-सी,
पेड़ पर पड़े झूले-सी,
पत्तों में फुदकती चिड़िया-सी,
फूलों में उडती तितली-सी,
बारिश की फुहार-सी,
जाड़ों की धूप-सी,
बस ऐसी ही होती हैं बेटियां. 

गुरुवार, 19 मार्च 2020

४११. डर


एक डर है,
जो अन्दर गहरे 
घुसा जा रहा है.

नींद की तलाश में 
रातें बिस्तर पर 
करवटें बदलती हैं.

बड़ी देर में होती हैं 
आजकल सुबहें,
सूरज थका-सा लगता है.

दोपहर उदास है,
शाम चिड़चिड़ी-सी,
वक़्त जैसे ठहरा पानी.

चाँद निकल आया है 
आसमान में, लेकिन 
उसमें धब्बे बहुत हैं.

मुझे आश्चर्य होता है 
कि कैसे बदल देता है दुनिया 
एक बिनबुलाया डर.

रविवार, 15 मार्च 2020

४१०.शोला

Bbq, Barbecue, Coal, Flame, Grill


मैं शोला हूँ,
मुझमें घी मत डालो,
भड़क उठूंगा,
छोड़ दो मुझे चुपचाप,
मैं ठंडा हो जाऊंगा,
राख बन जाऊंगा,
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा.

**

मैं शोला था,
राख का बोझ सहता रहा,
तुम आए,
फूँक भी नहीं मारी 
और वापस लौट गए.

गुरुवार, 12 मार्च 2020

४०९.परिवर्तन

Train, Wagon, Windows, Railway

रेलगाड़ी,अब वे दिन कहाँ?

लोग इंतज़ार करते थे, 
ख़ुश होते थे,
जब तुम सीटियाँ बजाती आती थी,
बाँध लेते थे बोरिया-बिस्तर
तुमसे मिलने को बेक़रार रहते थे.

अब तो मजबूरी में मिलते हैं,
उड़ने को आतुर,
कार में चलने के शौकीन,
तुम साफ़-सुथरी राजधानी 
या शताब्दी भी हो,तो क्या?

मायूस मत होओ, रेलगाड़ी,
बस चलती रहो,जब तक हो,
लोगों को पुकारती,
सबका स्वागत करती,
परिवर्तन ही दुनिया का नियम है.

रविवार, 8 मार्च 2020

४०८. कोरोना और होली

Hand, Rang Barse, Holi, Color, Pink
इस बार की होली 
बहुत अजीब होली है.

जब होलिका दहन होगा,
हम किसी कोने में रहेंगे,
बालकनी में खड़े होंगे 
या टी.वी. पर देखेंगे.

न हाथों में अबीर लेकर 
गाल रंगने का सुख होगा,
न बाँहों में भरकर 
गले लगाने की ख़ुशी.

'होली मुबारक' दूर से
डर-डर के कहेंगे,
मुँह पर मास्क लगाएँगे, 
तब घर से निकलेंगे.

कोरोना,
क्या बिगड़ जाता तुम्हारा,
जो थोड़ा सब्र दिखा देते ?
हम होली खेल चुके होते,
फिर तुम आ जाते.

कभी-कभी सोचता हूँ,
तुम्हारी चुनौती स्वीकार लूं,
हमेशा की तरह इस बार भी 
जी भर के होली खेलूँ.

शुक्रवार, 6 मार्च 2020

४०७. कड़ाही

Fry, Potatoes, Pan, Cook, Oil, Boil

सिंक में पड़ी कड़ाही को
साफ़ करते हुए वह सोचती है 
कि वह भी कड़ाही जैसी ही है,
आग पर चढ़ाई जाती है,
फिर उतारी जाती है,
रगड़ी जाती है,
खुरची जाती है,
पटकी जाती है,
धोई जाती है.

उसमें और कड़ाही में
बस इतना-सा फ़र्क है
कि कड़ाही को कभी-कभार 
आराम मिल जाता है.