गुरुवार, 26 मार्च 2020

४१४. खटिया

Bed, Camp, Camp Bed, Cot, Cot, Cot, Cot
वह जो खटिया तुमने 
आँगन के कोने में रखी है,
धूप में तपती है,
बारिश में भीगती है.

निवारें फट रही हैं उसकी,
पाए टूट रहे हैं,
हवा से चरमराती है,
दर्द से कराहती है वह खटिया.

थोड़ी सुध ले लो उसकी,
थोड़ी मरम्मत करा दो उसकी,
चाहो तो आँगन में ही रखो,
पर धूप-बारिश से बचा लो उसको.

कैसे समझओगो आज ख़ुद को,
कैसे अनदेखी करोगे उसकी,
आज तो तुम यह भी नहीं कह सकते 
कि तुम्हारे पास समय नहीं है.

10 टिप्‍पणियां:

  1. कैसे समझओगो आज ख़ुद को,
    कैसे अनदेखी करोगे उसकी,
    आज तो तुम यह भी नहीं कह सकते
    कि तुम्हारे पास समय नहीं है....
    बेहतरीन सृजन .

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  2. Nic e bahut अच्छी कविता ओंकार सर ,मेरे ब्लॉग की पोस्ट में भी कुछ कॉमेंट करें।धन्यवाद

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक कीचर्चा शनिवार(२८-०३-२०२०) को "विश्व रंगमंच दिवस-रंग-मंच है जिन्दगी"( चर्चाअंक -३६५४) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  4. भूले विसरे को अब तो याद कर लो ,आज तो समय का भी बहाना नहीं हैं ,सुंदर सृजन ,सादर नमस्कार आपको

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  5. सही कहा खटिया ही क्या घर में काफी वस्तुएं अनदेखी से पड़ी हैं...समय ही समय है बोर शब्द छोड़कर कुछ रचनात्मक बनें।
    बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।

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  6. बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे Best Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak

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