वह जो खटिया तुमने
आँगन के कोने में रखी है,
धूप में तपती है,
बारिश में भीगती है.
निवारें फट रही हैं उसकी,
पाए टूट रहे हैं,
हवा से चरमराती है,
दर्द से कराहती है वह खटिया.
थोड़ी सुध ले लो उसकी,
थोड़ी मरम्मत करा दो उसकी,
चाहो तो आँगन में ही रखो,
पर धूप-बारिश से बचा लो उसको.
कैसे समझओगो आज ख़ुद को,
कैसे अनदेखी करोगे उसकी,
आज तो तुम यह भी नहीं कह सकते
कि तुम्हारे पास समय नहीं है.
सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंबढ़िया।
जवाब देंहटाएंकैसे समझओगो आज ख़ुद को,
जवाब देंहटाएंकैसे अनदेखी करोगे उसकी,
आज तो तुम यह भी नहीं कह सकते
कि तुम्हारे पास समय नहीं है....
बेहतरीन सृजन .
Nic e bahut अच्छी कविता ओंकार सर ,मेरे ब्लॉग की पोस्ट में भी कुछ कॉमेंट करें।धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभूले विसरे को अब तो याद कर लो ,आज तो समय का भी बहाना नहीं हैं ,सुंदर सृजन ,सादर नमस्कार आपको
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंसही कहा खटिया ही क्या घर में काफी वस्तुएं अनदेखी से पड़ी हैं...समय ही समय है बोर शब्द छोड़कर कुछ रचनात्मक बनें।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सार्थक सृजन।
उम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
जवाब देंहटाएं