कच्ची कैरी-सी, इमली-सी, गोलगप्पे के चटपटे पानी-सी, दोने में रखी झालमुड़ी-सी, झाड़ियों में लगे खट्टे-मीठे बेर-सी, पेड़ पर पड़े झूले-सी, पत्तों में फुदकती चिड़िया-सी, फूलों में उडती तितली-सी, बारिश की फुहार-सी, जाड़ों की धूप-सी, बस ऐसी ही होती हैं बेटियां.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-03-2020) को "घोर संक्रमित काल" ( चर्चा अंक -3649) पर भी होगी। -- सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। -- आप अपने घर में रहें। शासन के निर्देशों का पालन करें।हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...! डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (23-03-2020) को "घोर संक्रमित काल" ( चर्चा अंक -3649) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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आप अपने घर में रहें। शासन के निर्देशों का पालन करें।हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेटियाँ वास्तव में जिन्दगी की रौनक हैं , बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंभावाभिव्यक्ति ।
वाह शानदार ,झालमुड़ी गजब उपमा रस से सराबोर।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
बहुत लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंबेटियाँ सच में ताजा फुहार हैं घर की ...
लाजवाब रचना ...