सिंक में पड़ी कड़ाही को साफ़ करते हुए वह सोचती है कि वह भी कड़ाही जैसी ही है, आग पर चढ़ाई जाती है, फिर उतारी जाती है, रगड़ी जाती है, खुरची जाती है, पटकी जाती है, धोई जाती है. उसमें और कड़ाही में बस इतना-सा फ़र्क है कि कड़ाही को कभी-कभार आराम मिल जाता है.
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है...... आप की इस रचना का लिंक भी...... 08/03/2020 रविवार को...... पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर..... शामिल किया गया है..... आप भी इस हलचल में. ..... सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक: https://www.halchalwith5links.blogspot.com धन्यवाद
अच्छी तुलना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
08/03/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 07 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर
जवाब देंहटाएंसादर
बड़ी गहन बात कह दी आ0
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत सुंदर रचना, नारी जीवन की विडंबनाओं को उकेरती हुई! बधाई और आभार।
जवाब देंहटाएं