सालों बाद ख़ुश हैं
अलमारी में रखी किताबें,
शायद कोई निकालेगा उनको,
शायद धूल झड़ेगी उनकी.
बुकमार्क काम आएगा शायद,
पलटे जाएंगे किताबों के पन्ने,
पढ़े जाएंगे उनमें लिखे शब्द,
सराहा जाएगा शायद उनको.
झूलेंगी आरामकुर्सी पर किताबें,
कमरे से बालकनी में आएंगी,
खुली हवा में सांस लेंगी,
महसूस करेंगी चाय की महक.
अलमारी में रखी किताबें इंतज़ार में हैं,
रह-रह कर देख रही हैं उम्मीद से,
शायद अब फिरेंगे दिन उनके,
शायद टूटेगा उनका लॉकडाउन.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 25 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएं--
सुप्रभात आपको।
घर मे ही रहिए, स्वस्थ रहें।
कोरोना से बचें।
भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकोरोना से बचें घर में रहे
आपको भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.3.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3652 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
झूलेंगी आरामकुर्सी पर किताबें,
जवाब देंहटाएंकमरे से बालकनी में आएंगी,
खुली हवा में सांस लेंगी,
महसूस करेंगी चाय की महक.
बहुत सार्थक सृजन।
बहुत खूब ओंकार जी ! किताबों के भी दिन बहुरे हैं | हर साहित्य प्रेमी तालाबंदी में यही कर रहा होगा | वैसे हम महिलाओं का काम इस स्थिति में बहुत बढ़ गया है | कम से कम मैं तो फिलहाल किताब पढने से बहुत दूर हूँ | सादर --
जवाब देंहटाएंअहा! किताबों को कितना अच्छा लगेगा. बहुत प्यारी रचना.
जवाब देंहटाएंउनके भी दिन आने चाहिए
जवाब देंहटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
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